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महंगाई के कारण जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने की गुंजाइश कम: सूत्र

नई दिल्ली। मौजूदा महंगाई और कीमतों की स्थिति के बीच वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने की गुंजाइश काफी कम है। समाचार एजेंसी पीटीआइ ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। बता दें कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में अभी चार टैक्स स्लैब- 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत है। यानी, इन दरों के हिसाब से अलग-अलग चीजों पर टैक्स लगाया जाता है। लेकिन, अभी इन टैक्स स्लैब को घटाकर संभवत: तीन करने पर विचार किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो कुछ वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाया जाएगा जबकि कुछ पर कम किया जाएगा। वहीं, सोने और सोने के आभूषणों की बात करें तो इन पर तीन प्रतिशत टैक्स लगता है।

लेकिन सूत्रों ने कहा है कि मंहागई दर ज्यादा है। ऐसे में जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने की गुंजाइश कम है। सूत्रों ने आगे कहा कि जहां अर्थव्यवस्था 2021 में कोविड के प्रभाव से उबर रही थी, वहीं इस साल फिर से भू-राजनीतिक तनाव का असर इस पर पड़ेगा। सूत्र ने कहा, ‘‘पूर्व में जीएसटी परिषद तत्कालीन स्थितियों से बेखबर नहीं थी।’’

जीएसटी के तहत अभी आवश्यक वस्तुओं को या तो सबसे कम स्लैब में रखा गया है या फिर टैक्स से बाहर रखा गया है जबकि लग्जरी और समाज के नजरिये से अहितकर वस्तुओं पर उच्चतम स्लैब (28 प्रतिशत) लागू होता है। जीएसटी लागू होने से राज्यों के संभावित राजस्व के नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए उपकर भी लगाया जाता है।

जीएसटी परिषद ने पिछले साल कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की अध्यक्षता में राज्य के मंत्रियों का एक पैनल गठित किया था, जो कर दरों को तर्कसंगत बनाकर और कर दरों में विसंगतियों को दूर करके राजस्व बढ़ाने के तरीके सुझाएगा। इससे पहले 1 जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने के समय, केंद्र ने राज्यों को जून 2022 तक 5 साल के लिए कम्पनसेट करने और 2015-16 को आधार वर्ष मानते हुए 14 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से उनके राजस्व की रक्षा करने पर सहमति व्यक्त की थी।

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