विवेक झा, भोपाल। आम करदाता हो या प्रोफेशनल, आयकर कानून की बारीकियों को समझना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। इन नियमों के बीच अक्सर ऐसी उलझनें सामने आती हैं, जिनका सही समाधान विशेषज्ञ की मदद से ही संभव है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए टेक्स ला बार एसोसिएशन ने अपने सदस्यों के लिए एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया।
एसोसिएशन के अध्यक्ष मृदुल आर्य की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट आकाश सक्सेना ने उपस्थित कर सलाहकारों को आयकर विवरणी भरने से लेकर क्रिप्टो करेंसी जैसी नई वित्तीय चुनौतियों तक के पहलुओं पर जानकारी दी।
फ्यूचर-ऑप्शंस पर भ्रम दूर किया
सीए सक्सेना ने फ्यूचर एवं ऑप्शंस से होने वाली आय को लेकर व्यावहारिक स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी आय को धारा 44एडी की अनुमानित आय योजना के अंतर्गत नहीं रखना चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के लेन-देन पर जीएसटी का कोई दायित्व नहीं बनता।
क्रिप्टो करेंसी: लाभ पर टैक्स, हानि पर राहत नहीं
आज के समय में क्रिप्टो करेंसी निवेश का बड़ा साधन बन चुकी है। इस विषय पर उन्होंने बताया कि क्रिप्टो से हुए नुकसान को लाभ से समायोजित नहीं किया जा सकता। जबकि यदि लाभ होता है, तो उस पर सीधे 30% की दर से आयकर देना अनिवार्य है। उनके अनुसार, इस विषय में अक्सर करदाताओं के बीच भ्रांतियां रहती हैं जिन्हें दूर करना आवश्यक है।
संयुक्त खाते और टीडीएस का सच
अक्सर संयुक्त बैंक खातों में टीडीएस कटौती की समस्या आती है। इस पर सीए सक्सेना ने कहा कि बैंक टीडीएस केवल प्राइमरी खाता धारक के नाम पर काटता है। ऐसे में प्राथमिक धारक को ही इसे अपनी आय में दिखाना चाहिए और उसी के माध्यम से छूट का लाभ लेना चाहिए।
लोन के लेन-देन पर स्पष्ट नियम
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी संस्था से लिए गए लोन की राशि को आगे लोन के रूप में नहीं दिया जा सकता। यह आयकर कानून के प्रावधानों का उल्लंघन माना जाएगा।
विदेशी कंपनियों के शेयर और टैक्स देनदारी
आजकल कई भारतीय कंपनियां अपने कर्मचारियों को विदेश में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर देती हैं। इस संदर्भ में उन्होंने बताया कि ऐसे शेयरों पर मिलने वाला डिविडेंड भारत में ही कर योग्य होता है। इसे छुपाना न केवल गलत है, बल्कि टैक्स चोरी की श्रेणी में आ सकता है।
प्रतिभागियों को मिला व्यावहारिक मार्गदर्शन
कार्यशाला में एसोसिएशन के सचिव मनोज पारख, कोषाध्यक्ष धीरज अग्रवाल, वरिष्ठ सदस्य गोविंद वसंता और हेमंत जैन सहित बड़ी संख्या में सदस्य उपस्थित रहे। उपस्थित सदस्यों ने वक्ता से सवाल-जवाब कर अपनी जिज्ञासाएँ दूर कीं और कई व्यावहारिक समस्याओं का समाधान पाया।
कर सलाहकारों के लिए उपयोगी पहल
यह कार्यशाला केवल कर संबंधी तकनीकी बिंदुओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि इससे यह संदेश भी गया कि कर कानूनों की गहरी समझ से ही करदाताओं को सही मार्गदर्शन दिया जा सकता है। एसोसिएशन की यह पहल पेशेवरों को अपने ज्ञान को अद्यतन करने और करदाताओं को पारदर्शी सलाह देने की दिशा में सराहनीय कदम साबित हुई।
