तोमर, सिंधिया, राकेश सिंह के क्षेत्र में हारी भाजपा
यही स्थिति वरिष्ठ सांसद राकेश सिंह की भी रही। जबलपुर नगर निगम 23 साल से भाजपा के हाथ में था, लेकिन इस बार कांग्रेस के खाते में चला गया। यह भी तब हुआ, जब सीनियर नेताओं की वह कर्मस्थली है। राकेश सिंह लगातार सांसद चुने गए, पर महापौर नहीं जिता पाए। पूर्व मंत्री अजय विश्नोई और शरद जैन भी असर नहीं दिखा पाए। जबलपुर और ग्वालियर में तो भाजपा को नए सिरे से एकजुटता दिखानी ही होगी, ग्वालियर के नतीजों से भाजपा में मुरैना नगर निगम को लेकर भी संशय की स्थिति बन गई है।
इंदौर में अपने विधायक भी नहीं साध पाए शुक्ला
कांग्रेस का भी यही हाल रहा। इंदौर में महापौर प्रत्याशी संजय शुक्ला से बड़े नेता दूरी बनाए रहे। यहां राऊ विधानसभा में वे 30 हजार वोटों से पीछे रहे। अश्विन जोशी, सत्यनारायण पटेल और गोलू अग्निहोत्री के क्षेत्र में भी शुक्ला हारे। सज्जन वर्मा अपने घर में भी कांग्रेस को नहीं जिता पाए। भोपाल में महापौर टिकट दिग्विजय सिंह ने दिलाया था, यहां तीनों कांग्रेस विधायक एकजुट नहीं थे।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के गढ़ में भी हारी कांग्रेस
खंडवा में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव सिर्फ कमलनाथ के दौरे के दौरान ही एक बार मंच पर पहुंचे थे। फिर महापौर प्रत्याशी आशा मिश्रा के साथ नहीं दिखाई दिए। सतना पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह का क्षेत्र है। यहां से सिद्धार्थ कुशवाह हार गए। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के क्षेत्र नरसिंहपुर में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।