indiaprime24.com

उत्तर-पूर्व में भगवा लहराने के बाद भाजपा के लिए कितनी आसान होगी कर्नाटक में जीत की राह?

भाजपा को उत्तर पूर्व में मिली ऐतिहासिक जीत की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है कि उसने वर्षों पुरानी माणिक सरकार को जबरदस्त शिकस्त दी बल्कि ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भाजपा ने महज चार वर्षों के अन्दर वहां पर जमीनी पकड़ बनाने में सफलता हासिल की, जिसका प्रयास वह कई वर्षों से कर रही थी। आपको बता दें कि त्रिपुरा में वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 50 में से 49 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। त्रिपुरा की जीत इसलिए भी बेहद खास हो जाती है। बहरहाल भाजपा की अग्नि परीक्षा यहीं पर खत्म नहीं हो गई है, अभी उसको और चुनावी संग्राम से पार पाना बाकी हैं, जिनमें से कर्नाटक का चुनाव सबसे अहम है।

कई मायनों में खास कर्नाटक का चुनाव

कर्नाटक में फ़िलहाल सिद्धरमैया के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है। खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मानते हैं कर्नाटक समेत ओडिशा और तमिलनाडु में जब तक भगवा नहीं लहराता तब तक पार्टी का स्वर्णिम काल नहीं आयगा। बहरहाल कर्नाटक का चुनाव कई मायनों में खास होने वाला है। भाजपा और कर्नाटक की राजनीति पर नजर रखने वाले भी ऐसा ही इशारा दे रहे हैं।

कर्नाटक में जीत की राह मुश्किल

कि कर्नाटक में तीन दल मैदान में हैं। उनके मुताबिक जनता दल सेक्युलर भी इसबार चुनावी लड़ाई में बड़ी पार्टी है। इसके आलावा कांग्रेस और भाजपा तो हैं ही। लेकिन असल मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही है। उनका कहना है कि सिद्धरमैया ट्रेडिशनल कांग्रेसी नहीं हैं, वो जनता दल से आए हैं। उनकी प्रष्ठभूमि भी समाजवादी रही है। वो जमीन से जुड़े नेता हैं इसलिए यहां पर भाजपा के लिए राह मुश्किल है।

अब ख़त्म हो गया मन मुटाव

कर्नाटक को लेकर की गई बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछली बार भाजपा की वहां पर हार का सबसे बड़ा कारण येदुरप्पा का एक बड़े धड़े के साथ टूट कर अलग हो जाना था। लेकिन अब येदुरप्पा पार्टी में वापस आ गए हैं और पार्टी में एकता साफ दिखाई दे रही है। कोई ऐसे बड़े विवादित मुद्दे भी पार्टी में नहीं हैं जिसका संकट आसपास दिखाई देता हो। राज्य स्तर पर जो कभी मन मुटाव था वो भी अब ख़त्म हो गया है लिहाजा ये कहने में कोई परहेज नहीं है कि इसबार भाजपा की तयारी पिछले चुनाव के मुकाबले काफी बेहतर है। इसके बावजूद वह ये भी मानते हैं की वहां पर कांग्रेस को हराना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। लेकिन यह नामुमकिन भी नहीं है। उनके मुताबिक ये चुनाव बड़ा कांटे का होगा।

चार वर्षों में मजबूत हुई भाजपा

प्रदीप का कहना था की बीते चार वर्षों में भाजपा ने जहां मजबूती हासिल की है वहीं विभिन्न राज्यों में मौजूद क्षेत्रीय दल लगातार कमजोर होते गए हैं, फिर चाहे सपा हो या बसपा हो, जिसका अब यूपी में कोई वजूद नहीं रह गया है। इसके अलावा DMK, AIADMK हो या और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां हों, सभी कमजोर हुए हैं। ये दल आज अपने वजूद को बचाने की ही कवायद कर रहे हैं, जिसमे कांग्रेस भी शामिल है। लिहाजा आज के दौर में विपक्ष भाजपा को टक्कर दे पाने की स्थिति में नहीं है।

क्यों लगातार उपचुनाव हार रही भाजपा

ये पूछे जाने पर कि आखिर जहां भाजपा लगातार राज्यों में अपनी जीत दर्ज करवा रही है, वहीं इस दौरान हुए उपचुनावों में लगातार हारती जा रही है। उनका जवाब था की उपचुनाव में ज्यादातर वहां की सरकार के खिलाफ हवा होना या उम्मीदवार का गलत होना इसकी एक बड़ी वजह बनता है। जहां तक मध्य प्रदेश में हुए उपचुनाव कि बात है तो वह सीट परंपरागत तौर पर कांग्रेस की ही रही है। वहां से कांग्रेस के उम्मीदवार मोदी लहर में भी जीते थे, लिहाजा कांग्रेस ने अपनी सीट दोबारा हासिल की है। लेकिन जहां तक राजस्थान में पार्टी को मिली हार की बात है तो वो जरुर चिंताजनक है। इसके बावजूद राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां हर 5 वर्ष में सरकार बदलती आई है। यहां ये कहने में भी कोई परहेज नहीं होना चाहिए की आने वाले दिनों में जहां भी चुनाव होने वाले हैं उनमें भाजपा के लिए सबसे कमजोर राजस्थान ही है।

दिखावे का है विपक्ष का गठजोड़

कांग्रेस और सपा या सपा और बसपा के गठजोड़ के सवाल पर उनका कहना था कि यादव और दलित एकसाथ वोट नहीं करते हैं ऐसा सिर्फ 1993 में ही देखने को मिला था जब सपा और बसपा साथ आए थे। लेकिन जीतने के बाद से ही उनमें बिखराव भी आना शुरू हो गया था। इसलिए ग्राउंड पर जो चीजें दिखाई देती हैं उनको जोड़ पाना काफी मुश्किल होता है। मौजूदा गठबंधन पर उनका साफ कहना था की ये शुद्ध रूप से सौदेबाजी वाला मामला है इसलिए इसका भी लम्बा खिंच पाना संभव नहीं है।

Exit mobile version