कोरियाई प्रायद्वीप के दोनों देशों के बीच 26 अप्रैल को वर्षों बाद पहला शिखर सम्मेलन होने वाला है। इसमें उत्तर कोरिया की तरफ से किम जोंग उन हिस्सा लेंगे तो दक्षिण कोरिया की तरफ से वहां के राष्ट्रपति मून जे इसमें शामिल होंगे। इसके बाद मई में किम की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी वार्ता होनी है। इन दोनों बैठकों पर पूरी दुनिया की नजर है। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा दिलचस्पी यदि किसी देश की है तो वो चीन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस मुद्दे के हल से सबसे ज्यादा फायदा चीन को ही होने वाला है।
चीन से 90 फीसद कारोबार
आपको बता दें कि उत्तर कोरिया का 90 फीसद कारोबार चीन से होता है। चीन ही उसको कई जरूरी चीजों की आपूर्ति करता है चाहे वो तेल हो या फिर कोयला या अन्य दूसरी चीजें। इस लिहाज से उत्तर कोरिया में दिन के साथ शुरू होने वाली दिनचर्या का चीन एक अहम हिस्सा है। पिछले दिनों जब उत्तर कोरिया को लेकर तनाव चरम पर था और संयुक्त राष्ट्र ने उसके खिलाफ प्रतिबंध और कड़े कर दिए थे उस वक्त भी चीन ने गलत तरीके से ही सही लेकिन कोयला समेत दूसरी चीजों की आपूर्ति उसको की थी। इसका खुलासा पहले जापान ने किया था बाद में अमेरिका ने भी इस तरह का बयान दिया था कि यूएन के लगाए प्रतिबंधों के बावजूद चीन उसकी मदद कर रहा है।
उत्तर कोरिया के लिए चीन अहम
उस वक्त विदेश मामलों के जानकारों ने एक बात साफ कर दी थी कि यदि चीन चाहेगा तभी उत्तर कोरिया बातचीत के लिए आगे आएगा। मौजूदा समय में उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया और अमेरिका से वार्ता के लिए राजी हो चुका है। ऐसे में चीन की दिलचस्पी इसमें बढ़ गई है। इसकी कुछ वजह काफी अहम है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इसको लेकर कुछ बातें कहीं हैं। अखबार ने जहां उत्तर कोरिया के बदले नजरिए का पूरी दुनिया से स्वागत करने की अपील की है, वहीं उसने कहा है कि यदि इस मुद्दे का हल निकल गया और कोई समझौता हो सका, तो यह कोरियाई प्रायद्वीप समेत चीन के लिए भी काफी फायदेमंद होगा।
स्पेशल इकनॉमिक जोन
इसमें कहा गया है कि शांति की राह पर अग्रसर उत्तर कोरिया यदि चाहेगा तो दक्षिण और चीन के साथ मिलकर एक विशेष आर्थिक जोन बनाकर विकास की राह पर आगे जा सकेगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि रूस और चीन से मिलती सीमा पर उत्तर कोरिया ने एक स्पेशल इकनॉमिक जोन पहले से ही बना रखा है। चीन की तर्ज पर इसको वर्ष 1992 में बनाया गया था। यहां पर ज्यादातर कंपनियां चीन या रूस की हैं। इसके अलावा हाल ही में यहां पर मंगोलिया ने भी अपना खाता खोला है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चीन और उत्तर कोरिया के बीच वर्षों से संबंध रहे हैं। इन संबंधों की मजबूती इस बात से भी जाहिर होती है कि पिछले माह उत्तर कोरिया के प्रमुख किम जोंग उन ने अपनी पहले विदेश यात्रा भी बीजिंग की ही की थी। यह इस बात को बताने के लिए काफी है कि उनके लिए चीन क्या मायने रखता है।
चीन की भावी रणनीति का हिस्सा
स्पेशल इकनॉमिक जोन बनाने की बात कर चीन ने कहीं न कहीं उत्तर कोरिया को लेकर अपनी भावी रणनीति भी साफ कर दी है। यूं भी स्पेशल इकनॉमिक जोन बनाकर वह उत्तर कोरिया में वही दांव खेलना चाहता है जो अब तक दूसरे देशों में खेलता आया है। यहां पर एक चीज और ध्यान में रखनी जरूरी हो जाती है कि अभी तक चीन भारत के पड़ोसी देशों को अपनी कर और आर्थिक ढांचे में सुधार करने की बात कर अपनी गिरफ्त में ले रहा था, लेकिन अब उत्तर कोरिया भी कहीं न कहीं उसकी निगाह में आ गया है।
परमाणु रिएक्टर में चीन का हाथ
आपको यहां पर ये भी बता दें कि उत्तर कोरिया में मौजूद परमाणु रिएक्टरों को लगाने में भी चीन का योगदान रहा है। उत्तर कोरिया में इसको करने में दूसरा साझेदार रूस बना था। हालांकि यह काम कहीं न कहीं अवैध रूप से किया गया था। अवैध इसलिए क्योंकि उस वक्त भी उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगे हुए थे। लिहाजा यहां पर परमाणु रिएक्टर लगाने, इसकी तकनीक और इसको लेकर वहां के लोगों को शिक्षित करने का काम भी इन्हीं दोनों के सहयोग से किया गया था।
उत्तर कोरिया का सम्मान नहीं कर रहे कुछ देश
जहां तक चीनी मीडिया की बात है तो उसका मानना है कि अमेरिका और कुछ दूसरे देश उत्तर कोरिया द्वारा की गई घोषणा का सम्मान नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह जरूरत से ज्यादा दबाव बताया जा रहा है। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि उत्तर कोरिया के पास मौजूदा समय में दस हजार से अधिक दूरी तक मार करने वाली मिसाइल है। अखबार का यह भी कहना है कि यदि अमेरिका जबरदस्ती या दबाव देकर उत्तर कोरिया से अपनी परमाणु हथियार नष्ट करने की बात करेगा तो यह न तो चीन स्वीकार करेगा और न ही दक्षिण कोरिया को यह मंजूर होगा। अखबार ने इस तरह के किसी भी कदम को विनाषकारी बताया है।
चीन की अहम भूमिका
चीन की तरफ से बार-बार यह बात कही जाती रही है कि उत्तर कोरिया को लेकर वह काफी अहम भूमिका निभा सकता है। चीन यह भी मान रहा है कि वह दुनिया में उत्तर कोरिया की छवि को सुधारने में भी सहायक हो सकता है। गौरतलब है कि अमेरिका में दो ग्रुप काम करते हैं। एक ग्रुप चाहता है कि अमेरिका को उत्तर कोरिया को लुभाने का काम करना चाहिए। चीन की जिलिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर झांग हूझी मानते हैं कि दुनिया को उत्तर कोरिया की कही बातों पर विश्वास करते हुए ओग बढ़ना चाहिए। उत्तर कोरिया ने दो दिन पहले ही एक प्रस्ताव पास कर अपनी बदली रणनीति को सभी के सामने रखा है। इसके तहत दुनिया के साथ मिलकर चलने और बेहतर माहौल बनाने की भी बात कही गई है।
उत्तर कोरिया की सस्ती मजदूरी
झांग का ये भी कहना है कि किम जोंग उन के सत्ता में आने के बाद उत्तर कोरिया ने काफी तरक्की की है। लेकिन इस विकास की गति को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने रोकने का काम किया है। उन्होंने उन बातों की तरफ भी इशारा किया है जो चीन की भावी मंशा में प्रकट किए गए हैं। झांग का कहना है उत्तर कोरिया के सस्ते मजदूरों का फायदा पूरी दुनिया को मिल सकता है। इसके अलावा उसकी भौगोलिक स्थिति और विदेशी निवेश का भी फायदा उठाया जा सकता है।