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Triple Talaq: मुस्लिम बहनों को मिला न्याय, मोदी सरकार के साहस को सलाम, रूढ़िवादी राजनीति हुई ध्वस्त

आखिरकार मुस्लिम बहनों को न्याय मिलने का रास्ता साफ हो गया। तीन तलाक के खिलाफ कानून के लिए संसद ने मुहर लगा दी। यानी अब किसी ने इस अमानवीय विशिष्ट अधिकार का दुरुपयोग किया तो जेल जाना होगा।

बढ़ते भारत, शिक्षित भारत और सबको समान अधिकार वाले भारत में मंगलवार का दिन हमेशा के लिए अंकित हो गया और साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार का ध्येय, कुछ करने की लगन और राजनीतिक प्रबंधन भी रेखांकित हो गया।

हां, यह भी स्पष्ट हो गया कि विपक्ष और खासकर कांग्रेस एक बार फिर से खुद को बेडि़यों से मुक्त करने में असफल रही। शायद इसके लिए फिर से पछताना पड़े।

अफसोस की बात यह है कि जो अधिकार मुस्लिम महिलाओं को पहले मिल जाना चाहिए था उसके लिए सरकार को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। संख्याबल में हावी विपक्ष दो बार राज्यसभा में इसे रोक चुका था। इस बार भी वही कोशिश थी लेकिन भाजपा के राजनीतिक प्रबंधन ने बाजी पलट दी। आश्चर्य यह भी है कि इसे भाजपा की राजनीतिक कवायद कहा जा रहा है।

क्या यह किसी से छिपा है कि विशुद्ध राजनीति के लिए कांग्रेस ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलकर फिर से मुस्लिम महिलाओं को मिला न्याय खत्म कर दिया था। रायबरेली के अली मियां ने थोड़ा सा झटका दिया था और तब की राजीव गांधी सरकार सिर के बल खड़ी हो गई थी।

यह सार्वजनिक हो चुका है कि जब तत्कालीन सरकार में मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने आपत्ति जताई थी और इस्तीफा दिया था तो सरकार के एक बड़े मंत्री ने कहा था- ‘मुस्लिमों की दशा और मनोदशा बदलने का काम सरकार का नहीं है।’ इससे बड़ी स्वीकारोक्ति क्या हो सकती है कि जो किया गया था वह वोट के लिए था। अब जब बदलाव हुआ है तो इल्जाम मोदी सरकार पर लगाया जा रहा है।

हालांकि यह सच है कि इस बड़े ऐतिहासिक कदम का राजनीतिक लाभ भी सरकार और भाजपा को मिलेगा। पिछले चुनावों में महिलाओं की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। महिलाएं जीवन में आने वाले बदलावों को लेकर ज्यादा सक्रिय व जागरुक होती हैं। उनका आकर्षण भाजपा की ओर बढ़ेगा इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए, लेकिन तीन तलाक के खिलाफ कानून को केवल राजनीति से जोड़ना भी सही नहीं होगा। वैसे अगर राजनीति की बात करें तो यह जरूर है कि कांग्रेस के लिए परेशानी और बढ़ेगी।

तुष्टिकरण की राजनीति पर कांग्रेस लंबे समय तक चलती रही। हाल के दिनों में पार्टी के अंदर एक बड़े वर्ग ने अहसास किया कि इसका नुकसान ही हुआ और इसीलिए चुनाव के दौरान तौर तरीके बदले भी। लेकिन मंगलवार को फिर से जता दिया कि कांग्रेस की सोच शाहबानो काल के मुकाबले बदली नहीं है।

क्या कांग्रेस कभी भी सामाजिक मंच पर जेल भेजे जाने के प्रावधान का विरोध कर पाएगी। अगर जेल भेजने का प्रावधान ही न हो, पुलिस के पास कार्रवाई का दिशा निर्देश ही न हो तो कार्रवाई कैसे होगी। भरण पोषण के लिए केवल व्यक्तिगत कमाई ही साधन नहीं होता है, संपत्ति से भी भरपाई होती है।

बेल का प्रावधान यहां भी है, लेकिन जेल भेजे जाने के प्रावधान का विरोध सिर्फ इसलिए कि उससे वोट पर प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस को इसके लिए लंबे वक्त तक पछताना पड़ेगा। विपक्ष की संख्याबल की रणनीति ध्वस्त हो गई तो इसके पीछे सकारात्मक राजनीति की धमक भी सुनी जा सकती है। हाल के दिनों में कई सदस्यों और दलों ने भाजपा का साथ दिया और विपक्ष से पल्ला झाड़ा है।

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