indiaprime24.com

Charles Darwin के पडपोते फिलिक्स पैडल बोले- अंग्रेजों ने बिगाड़ी आदिवासियों की संस्कृति

NDIrVUr˜¢m viz˜ ----------- mkckr"; Fch--ykd{ustü lu rcdtze ytr=Jtrmgtü fUe mkôf]Ur;, Cth; bü mcmu Fhtc :t rc{rxN rmôxb& rVUr˜¢m

भोपाल। मानव विकास के महानतम वैज्ञानिकों में से एक चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के पड़पोते और लंदन में जन्मे फिलिक्स पैडल (Dr Felix Padel) भारत में पिछले चालीस साल से आदिवासियों की संस्कृति और उनकी भाषा को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। आदिवासी भाषाओं पर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने भोपाल आए पैडल ने नवदुनिया से कहा कि ब्रिटिश राज(British Rule in India) ने भारत में आदिवासियों की संस्कृति (Tribal Culture in India) बिगाड़ने की शुरुआत की थी और यह सिलसिला आज भी चला आ रहा है। मप्र में आदिवासियों के बीच फैले कुपोषण की बड़ी वजह यही है कि ब्रिटिश राज के दौरान ही आदिवासियों को जंगल से हटाने की साजिश शुरू हो गई थी। मेरी नजर में ब्रिटिश सरकार की प्रशासन और पुलिस व्यवस्था सबसे खराब व्यवस्थाओं में से एक है और आदिवासियों का सामाजिक ताना-बाना सबसे बढ़िया व्यवस्था है।

पैडल ने दिल्ली में स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमफिल और लंदन में ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी से पीएचडी की है। वे उड़ीसा में नियमगिरी जंगलों और वहां रह रहे आदिवासियों के बीच काम कर रहे हैं। पैडल ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने वन विभाग बनाकर आदिवासियों को जंगल से दूर किया। आजाद भारत में भी तथाकथित मुख्यधारा में लाने के नाम पर उनसे वनाधिकार छीने गए।

आदिवासी ही बचा सकते हैं जंगल

पैडल का कहना है कि भारत में हजारों सालों से जंगलों की रक्षा आदिवासी करते आए हैं, इसलिए जंगलों को उन्हें ही सौंपा जाना चाहिए। हम लोकतंत्र उन पर थोपने की कोशिश करते हैं, जबकि आदिवासी ही सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक हैं।

डार्विन और आदिवासियों का एक ही सिद्धांत

चार्ल्स डार्विन के परिवार से ताल्लुक रखने वाले पैडल कहते हैं कि इस इतिहास से मुझमें जिम्मेदारी की भावना आती है। मुझे लगता है कि चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत और आदिवासियों की संस्कृति एक ही संदेश देती है।

स्कूलों में पढ़ाई जाएं आदिवासी भाषाएं

फिलिक्स पैडल ने कहा कि आदिवासी समुदाय के बच्चों पर स्कूल में मौजूदा शिक्षा व्यवस्था थोपी जा रही है। पूरे भारत में करीब एक हजार तरह की आदिवासी भाषाएं हैं। इन्हें क्षेत्र के हिसाब से स्कूलों में पढ़ाई जानी चाहिए, ताकि इन समुदायों के बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़े रहें। मप्र में इसे लागू किया जाना चाहिए। प्रदेश के कई इलाकों में रहने वाले पारधी समुदाय को आदिवासी दर्जा दिया जाए।

Exit mobile version