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MCU Bhopal : फिर राजनीति का अखाड़ा बना पत्रकारिता विश्वविद्यालय

भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के जाते ही एक बार फिर कुलपति की रवानगी हो गई। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री कार्यालय से उन्हें इस्तीफा देने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद ही उन्होंने इस्तीफा दिया है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब किसी पार्टी की सरकार बदली हो तब किसी कुलपति को इस्तीफा देना पड़ा है। पत्रकारिता विवि का इतिहास रहा है कि जब भी राज्य में सरकार पलटी है, तब कुलपति को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि विवि के एक्ट के अनुसार विवि की महापरिषद का मुखिया मुख्यमंत्री होता है। ऐसे में सरकार बदलने के साथ ही कुलपति भी बदलता रहेगा। इतिहास देखें तो ऐसा होता भी रहा है, कांग्रेस और भाजपा जब सरकार में आई, इस विवि में अपनी विचारधारा से जुड़े लोगों को मुखिया बनाया गया है। जिस पार्टी की सरकार रहेगी वे अपनी विचारधारा के व्यक्ति की नियुक्ति कुलपति के पद पर करते रहेंगे। विवि में कई नियुक्तियां अकादमिक वजहों से ज्यादा विचारधारा से संबंध रखने के लिए विवादों में रही हैं।

यह रहा है पत्रकारिता विवि का इतिहास

– साल 1990 में पत्रकारिता विवि की स्थापना के साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री सुदंरलाल पटवा ने राधेश्याम शर्मा को विवि का महानिदेशक बनाया।

– साल 1993 में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बने तो शर्मा ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अरविंद चतुर्वेदी को महानिदेशक बनाया गया।

– साल 1996 में छात्रों ने आंदोलन किया तो चतुर्वेदी को हटाकर तत्कालीन आईएएस अधिकारी भागीरथ प्रसाद को महानिदेशक का प्रभार दिया गया।

– साल 1999 में रिटायर्ड चीफ सेक्रेट्री एससी बेहार को महानिदेशक बनाया गया।

– साल 2003 में मुख्यमंत्री उमा भारती बनी तो रिटायर्ड चीफ सेक्रेट्री एससी बेहार ने इस्तीफा दे दिया। कुछ दिनों तक इसका प्रभार तत्कालीन आईएएस अधिकारी सुमित बोस के पास रहा।

– साल 2005 में अच्युतानंद मिश्रा को महानिदेशक बनाया गया। साल 2006 में महानिदेशक के पद को कुलपति में बदल दिया गया।

– साल 2010 में मिश्रा ने अपना कार्यकाल पूरा किया फिर प्रोफेसर बीके कुठियाला कुलपति बने। उनकी नियुक्ति मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की।

– साल 2018 में प्रो कुठियाला अपना दो बार का कार्यकाल पूरा करने के बाद हटे।

– साल 2018 में ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने को कुलपति नियुक्त किया।

– साल 2018 में कांग्रेस सरकार के आने के कुछ दिनों बाद कुलपति पद से पत्रकार उपासने ने इस्तीफा दे दिया।

– साल 2019 में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की कुलपति के पद पर नियुक्ति की थी।

पी नरहरि प्रभारी कुलपति, द्विवेदी बने रजिस्ट्रार

जनसंपर्क विभाग के आयुक्त पी नरहरि एक बार फिर पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति बने हैं। इसके साथ ही राज्य शासन ने तिवारी का इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया है। तिवारी की इस पद पर नियुक्ति के पहले भी वे प्रभारी कुलपति रह चुके हैं। अब जब तक नियमित कुलपति की नियुक्ति नहीं होती है नरहरि ही विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यभार संभालते रहेंगे। इसी तरह रजिस्ट्रार दीपेंद्र बघेल को हटाकर प्रोफेसर संजय द्विवेदी को रजिस्ट्रार बनाया गया है। इसके अलावा रैक्टर पूर्व आईएएस अधिकारी रमेश चंद्र भंडारी ने भी इस्तीफा दे दिया है। इसी तरह एडजंक्ट प्रोफेसर विष्णु राजगढ़िया और अरुण त्रिपाठी की सेवाएं भी समाप्त कर दी गई हैं।

कांग्रेस सरकार में ऐसे हुई राजनीति

– सरकार बनने के साथ ही पूर्व कुलपति बीके कुठियाला समेत 19 प्रोफेसरों के खिलाफ ईओडब्ल्यू ने फर्जीवाड़े का मामला दर्ज कर लिया था।

– एडजंक्ट प्रोफेसरों के नाम पर दिलीप मंडल, मुकेश कुमार, विष्णु राजगढ़िया और अरुण त्रिपाठी की बिना किसी प्रक्रिया के नियुक्ति।

– दिलीप मंडल और मुकेश कुमार ने सामान्य वर्ग के लोगों के खिलाफ जमकर विवादित टिप्पणी की। इसका विरोध करने वाले 22 छात्रों को निष्कासित कर शासकीय कार्य में बाधा की एफआईआर करा दी गई। हालांकि बवाल मचने पर निष्कासन वापस ले लिया।

एक्ट के कारण होता है बदलाव

पत्रकारिता विवि सीधे राज्य सरकार के आधीन संचालित होता है। इसकी महापरिषद का अध्यक्ष भी मुख्यमंत्री होता है ऐसे में जिस भी पार्टी का मुख्यमंत्री होगा वो अपनी विचारधारा के व्यक्ति को कुलपति नियुक्त करता रहेगा। ऐसा पहले भी होता आया है भविष्य में भी होता रहेगा। यदि इस विवि से राजनीति समाप्त की जानी है तो इसका एक ही समाधान है कि इसकी कमान भी अन्य सरकारी विश्वविद्यालयों की तरह राज्यपाल को सौंप दी जाए। हालांकि ऐसा कोई भी सरकार अपनी पहल पर तो नहीं करेगी। अरुण गुर्ट्ट, शिक्षाविद और पूर्व आईपीएस

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