
आत्मा की सफाई कैसे करें? आत्मा को स्वाभाविक स्थिति में कैसे लाएं? आत्मा के आवरण कैसे हटाए?

आत्मा को स्वाभाविक स्थिति में लाना, आत्मा के ऊपर चढी हुई खोलों को हटाना , जम रही विकारों की धूल हटाना , उसे स्वभाविक स्थिति में लाना , यही आत्मा की निर्विकार स्थिति कहलाती है , हमारा मन अपनी ही आत्मा से इसलिए ठीक तरीके से संपर्क और संबंध नहीं बना पाता क्योंकि हमारे शरीर और हमारी आत्मा के बीच जो ब्रिज है वह जर्जर हो चुका है रास्ते में बहुत सारी धूल जमा हो गई , बहुत सारे अवरोध और प्रतिरोध खड़े हो गए , आत्मा चारों तरफ से कटीली झाड़ियों से , विकृतियों से दूषित विषारों से , परेशानियों से , रोग शोक से घिर गई है , जिस तरह अभिमन्यु चक्रव्यूह में फसकर दम तोड़ने लगता है उसी तरह हमारी आत्मा दुष्यंत परेशानियों , नकारात्मक विचारों ,नकारात्मक परिस्थितियों, नकारात्मक लोगों के प्रभावों, रोग-शोक में फंसकर अपने स्वभाविक स्वरूप को , अपनी नेचुरल कंडीशन को भुला बैठती है , आत्मा पर दबाव बढ़ता चला जाता है , आत्मा घुटन महसूस करने लगती है I

कई बार आत्मा घुटन महसूस करने लगती है , व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है , जब वो इस जीवन को छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है जब उसे यह जीवन नीरस लगता है तो समझ लीजिए कि उसके अंदर बैठी हुई है वह आत्मा शारीरिक और मानसिक दबाव को सहन नहीं कर पा रही, मुक्त होना चाहती है, आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं यहां अलर्ट हो जाने की जरूरत है , आत्मा सुखी करना है ,स्वतंत्र करना सहज करना है, निर्मल शांत करना है, तो उसके ऊपर से सारे प्रेशर सारे दबाव हमें हटाने पड़ेंगे ,सारे आवरणों को हटाना पड़ेगा, जिस तरह से गाड़ी के इंजन को यदि समय समय पर सर्विस ना किया जाए तो वो दम तोड़ने लगता है , गर्म होने लगता है हाफने लगता है उसी तरह से समय-समय पर यदि आत्मा के ऊपर से आवरण , दबाव ,गंदगी और मैल ना हटाया जाए तो वह भी कराहने लगती है I आत्मा के ऊपर से मलीनता हटाने से अंतकरण में शांति और प्रफुल्लता बढ़ती है ,जैसे जैसे हम मलीनता ,दबाव ,आवरण हटाते चले जाते हैं आत्मा के अंदर बैठी हुई विभूतियों , शक्तियों का भंडार हमारे सामने आने लगता है I

स्वभाविक तौर पर आत्मा पांच आवरणों (खोलों)से गिरी हुई है इनको पंचकोश कहा जाता है उपनिषदों में आत्मा को सत्-चित्-आनन्द स्वरूप बताया गया है जो आत्मा नही है वो शरीर है उसे हम अपना स्थूल या भौतिक स्वरूप कहते हैं , जो लोग आत्मा (शूक्ष्म रूप) और शरीर (स्थूल रूप) के भेद को जानता है उसको आत्मज्ञानी या ब्रह्मवेत्ता कहते हैं । आत्मा के उपर आउटर सरफेस यानी बाहरी आवरण ‘अन्नमय कोश’ का है। आत्मा इस ‘अन्नमय कोश’ में व्यापक है इस ‘अन्नमय कोश’ के भीतर प्राणों आते जाते रहते हैं , ये प्राण पूरे शरीर को जीवित रखते हैं , शरीर के जिस हिस्से में प्राण नही पंहुचते वो भाग जड़ या मुर्दा हो जाता है। दूसरा है प्राणमय कोष , शरीर में जितनी एक्टीविटी होती है, वो सब ‘प्राणमय कोश’ से संभव होती हैं। इसके ही बल पर ब्लड सर्कुलेशन होता है ये कोष ‘अन्नमय कोश’ के अंदर होता है। अन्नमय के अंदर प्राणमय , प्राणमय के अंदर मनोमय कोष , ज्ञान और कर्मे इंद्रिय (आर्गंस) इस कोष से संचालित होती है ,चौथा आवरण ‘विज्ञानमय कोश’ हैं , जिस मनुष्य में इस कोष का प्रभाव बढ़ा हुआ होता है, वह मन और प्राणों की चेष्टा , जेस्चर को रोक सकता है। यह स्वयं पहले तीनों कोशों में फैला हुआ है। इसके अंदर पाँचवाँ आवरण ‘आनन्दमय कोश’ हैं। ये कोश हर अवस्था में हमारे नकारात्मक भावों को नियंत्रित करने की कोशिश करता है , आत्मा इन कोशों से बंधी हुई है ये खोल हैं , ये घर हैं कैदखाना नही, आत्मा इनमें रहती है, लेकिन इनके बंधन में नही , नकारात्मकताओं के कारण ये कोश कुंद होने लगते हैं जैंसे घर कुंद हो जाये उसकी खिड़की दरवाजे बंद होने लगें या सिकुड़ने लगें, हमें अपनी आत्मा तक पंहुचने के लिए इन पांच कोशों के दरवाजों , खिड़कियों को खोलना होगा , जैसे-जैसे हम इन्हे खोलते चले जाते हैं वैसे-वैसे आत्मा निखरती चली जाती है , साधना के द्वारा हम न सिर्फ इन कोशों से नकारात्मक धूल और दबाव के बादल हटा देते हैं आत्मा के ऊपर के इन कोशों के 5 दरवाजों को भी खोल देते हैं , अपने मूल रूप में आत्मा एक दिव्य प्रकाश है जो उजागर हो जाती है, यहीं से सिद्धियों की शुरुआत होती है , हम धन का बल देखते हैं ,एजुकेशन का पावर देखते हैं ,बुद्धि का,शस्त्रों का बल देखते हैं, संगठन का बल देखते हैं ,और इनके चमत्कार भी देखते हैं , लेकिन हमारी आत्मा का बल हमें नहीं पता ,इसका अनुभव हमें नहीं है जब आत्मा का बल उसकी ताकत का पता चल जाता है, जब आत्मा को हम देखने लगते हैं , बाकी सारे जो बल है , बाकी सारी जो फोर्सेस हैं , वह वह छोटी मालूम देती है , जब हम लोगों को ये साधना कराते हैं , तो उन्हें तरह-तरह के प्रकाश का अनुभव होने लगता है , उनका और तेज बढ़ने लगता है , एक साधारण मनुष्य का और ऑरा उसके आसपास के 18 इंच के घेरे में रहता है , आत्म उन्नति वाले मनुष्य का आरा 150 फीट तक फैला हुआ होता है , उसकी शक्ति बहुत ज्यादा होती है और जैसे-जैसे अध्यात्म का विकास होता चला जाता ये ऑरा , आभामंडल , परिमंडल और बढ़ता चला जाता है , यहां पर व्यक्ति खुद को बदला हुआ महसूस करने लगता है , साधारण मनुष्य अपने तेजपुंज से कोई खास काम नहीं ले सकता लेकिन जो व्यक्ति विकसित हो चुका है जिसने उस शक्ति पर अधिकार कर लिया है सका अपनी संकल्प शक्ति के तौर पर , विल पावर के तौर पर यूज कर सकता है , और उसे सैकड़ों मील दूर भी भेज सकता है ,एक साधक अपने और आपको अपने विल पावर को दूसरे देशों तक भी ले जा सकते हैं , जब इस तरह की साधना सामूहिक रूप से की जाती है , सामूहिक उर्जा ब्रह्मांड में जाती है और ब्रह्मांड से एक किरण पुंज उतरती है , और उस दौरान मौजूद सभी व्यक्तियों में प्रकाश दिखाई लगता है , इसीलिए सत्संग को , सामूहिक प्रार्थना को महत्वपूर्ण बताया गया है , आत्मिक प्रगति के लिए एकाग्रता और ध्यान दोनों की कुछ विशेष विधियों का प्रयोग किया जाता है कुछ प्रार्थना है , चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामूहिक ,ध्यान और धारणा के समन्वय से आत्मा से जुड़ने की कोशिश की जा सकती है , पूरा एक विज्ञान है ये , इसमें मन को स्थिर किया जाता है , स्थिरता को ही निर्विकल्प समाधि कहा गया है और एकाग्रता को सविकल्प समाधि कहा गया है , सविकल्प का मतलब है विचारों को अपना कार्य करते रहने देना , स्थिरता से आंतरिक थकान दूर होती है , स्थिरता के लिए हठ योग प्रभावकारी माना गया है , कुछ मिनट के लिए भी साधक सिर्फ कुछ मिनट के लिए भी निर्विकल्प हो सके तो काफी है , एकाग्रता के चमत्कार आप अक्सर देखते हैं , एकाग्रता और संतुलन का चमत्कार आप सर्कस में देख सकते हैं जिनकी स्मरणशक्ति मेमोरी पावर बहुत ज्यादा है उसके पीछे भी एकाग्रता ही कारण होता है , तन्मयता स्थिरता और एकाग्रता का एक बेहतरीन रूप है , जब मन स्थिर भी होता है और एकाग्र भी होता है तो हम तन्मय हो जाते हैं , सिर्फ मंत्रोचार करने से उंगलियों से माला फेरने से कुछ आसन करने से सिद्धियां हासिल नहीं हो सकती उसके साथ मनोयोग और श्रद्धा भी जोड़ना जरूरी है , चेतना शक्ति के उत्थान के लिए उसके परिष्कार के लिए तन्मयता बहुत जरूरी है , मनुष्य 3 तरह के शरीर से मिलकर बना है सबसे पहला है स्थूल शरीर स्थूल शरीर जो फिजिकल बॉडी है उसके जरिए हम अपने सारे काम पूरे करते हैं लेकिन स्थूल शरीर के अलावा एक और शरीर है इसे कहते हैं सूक्ष्मशरीर subtle body मन बुद्धि चित्त अहंकार इसी सूक्ष्म शरीर के हिस्से हां , सूक्ष्म शरीर दूसरी परत है इसकी दिव्य दृष्टि हमें हृदय चक्र में ध्यान लगाते वक्त दिखाई देती है , तीसरी परत है कारण शरीर , मन बुद्धि चित्त अहंकार आकांक्षा मान्यता प्रेरणा अमंग इसी कारण शरीर के हिस्से हैं, मस्तिष्क भौतिक शरीर का हिस्सा है जबकि दिमाग सूक्ष्म शरीर का हिस्सा हमारी इच्छाएं हमारे विचार कारण शरीर पहुंचता का हिस्सा है, जानवर सिर्फ भौतिक शरीर के बारे में ही जानते इसलिए विशेष अपने भौतिक शरीर को बचाए रखने और उसकी रक्षा पोषण में ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं , ज्यादातर लोग जानते-बूझते हुए भी पूरी पूरी जिंदगी सिर्फ फिजिकल बॉडी सेवा में पूरी उम्र निकाल देते अपने शरीर को सुख सुविधाएं देने ऐशो-आराम देने आनंद देने संतुष्टि देने के लिए पैसा और सामान जुटाने में इस जीवन को खपा देते हैं , एक सामान्य व्यक्ति अपने अपने शरीर को ही सब कुछ मानता है , इसलिए उसकी प्रसिद्धि ,उसके सम्मान उसकी प्रतिष्ठा ,उसकी सत्ता, उसका ठाट-बाट बढ़ाने में लगा रहता है , इसी तरह मन बुद्धि चित्त अहंकार भी एक व्यक्ति को पूरे जीवन भर एक सर्कल में एक बर्तन में घुमाते रहते हैं , भटकाते रहते हैं स्थूल और सूक्ष्म शरीर से ऊपर कारण शरीर को माना गया है , क्योंकि कारण शरीर आकांक्षा मान्यता प्रेरणा उमंग से भरा हुआ होता है , इसलिए कारण शरीर हमारे अंदर श्रद्धा प्रज्ञा निष्ठा भावनाओं का केंद्र होता है हमारे शरीरों का सही ढंग से समन्वय हो जाए उनके अंदर हारमोनी पैदा हो जाए तो चमत्कार हो सकता है
वोम गुरू अतुल विनोद पाठक .. आध्यात्मिक गुरू हैं उनसे 7223027059 पर व्हाटसएप पर संपर्क किया जा सकता है अधिक जानकारी के लिए आप womguru.in और womguru.com विजिट कर सकते हैं
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