
कराची : पाकिस्तान में लगभग हर समुदाय के अल्पसंख्यकों का बुरा हाल है। इन्हीं में यहां रहे सिख समुदाय के लोग भी शामिल हैं, जिनका कहना है कि उन्हें अपनी संस्कृति बचाने तक के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। कट्टरपंथियों के खौफ के साये में जी रहे इन लोगों को प्रशासन से भी शिकायतें हैं। उनका कहना है कि प्रशासन से उन्हें आम तौर पर मदद नहीं मिलती।यहां सिखों की एक बड़ी आबादी ऐसी है, जो खैबर-पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान आतंकवादियों के दमन से पलायन कर यहां पहुंचे हैं। पाकिस्तान की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सिखों का कहना है कि खैबर पख्तूनख्वा में ये आतंकी उनसे ‘जजिया’ वसूला करते थे और नहीं देने पर उनका उत्पीड़न किया करते थे।’जजिया’ एक धार्मिक कर (tax) है, जिसका उल्लेख इतिहास की किताबों में मिलता है। मध्ययुगीन काल में यह कर मुस्लिम भूमि पर रहने वाले गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों से वसूला जाता था, लेकिन पलायन कर कराची पहुंचे सिखों का कहना है कि यह आज भी खैबर-पख्तूनख्वा में अल्पसंख्यकों के लिए एक सच्चाई है।सिखों का कहना है कि यहां सरकारी स्कूलों में सिखों और अन्य समुदाय के बच्चों को भी इस्लामिक शिक्षा दी जाती है। उनका कहना है कि उन्हें इससे परेशानी नहीं है, पर वे अपने धर्म, संस्कृति व इतिहास को नहीं भूलना चाहते।
कराची में जिन्ना रोड पर स्थित मेन सिख गुरुद्वारा से जुड़े वॉलंटियर मनोज सिंह के अनुसार, सिख समुदाय के लोग कराची में अपने बच्चों के लिए स्कूल खोलना चाहते हैं, पर वे आज भी अपने पूर्वजों द्वावरा 1930 में स्थापित खालसा हाई स्कूल का नियंत्रण पाने के लिए लड़ रहे हैं। यह स्कूल फिलहाल शिक्षा विभाग के नियंत्रण में है।वहीं, इतिहासकार निसार खुरो का कहना है कि विभाजन से पहले कराची की ओल्ड सिटी में हिन्दू, सिख, क्रिश्चन, मुस्लिम और पारसी लोगों की आबादी थी। सभी समुदाय के लोगों ने अपने-अपने स्कूल भी बनवाए थे, लेकिन अब कुछ चुनिंदा संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश इस ऐतिहासिक शहर की धरती से गायब हैं।