ढोंग है हाफिज सईद पर पाकिस्तान की कार्रवाई, उनकी रणनीति का हिस्सा है ‘आतंकवाद’

अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से डरकर भले ही पाकिस्तान ने कुख्यात आतंकी सरगना हाफिज सईद के आतंकी संगठन जमात-उद-दावा, फलाह-ए-इंसानियत समेत संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल अन्य आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित आतंकी संगठन करार दे दिया हो, लेकिन समझना कठिन नहीं कि उसकी यह पहल एक छलावा भर है। अभी तक वह हाफिज सईद को एक समाजसेवी करार देता था और दलील गढ़ा करता था कि उसके खिलाफ पाकिस्तान में एक भी आरोप नहीं है, लेकिन अब जब उसे लगा कि कुछ रोज बाद पेरिस में होने वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की सालाना बैठक में उसका भी नाम मनी लांडिंग और टेरर फंडिंग की काली सूची में शामिल हो सकता है तो उसने हाफिज सईद के संगठन को आतंकी ठहराने में देर नहीं लगाई। मनी लांडिंग और टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ की काली सूची में यदि उसका नाम शामिल कर लिया जाता है तो उसे अमेरिका समेत वैश्विक वित्तीय संस्थानों से मदद मिलना बंद हो जाएगा।

पाकिस्तान को करोड़ों रुपये की मदद का प्रस्ताव पेश

अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान को करोड़ों रुपये की मदद का प्रस्ताव पेश किया है। अगर पाकिस्तान अपनी जमीन पर पसरे आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित आतंकी संगठन नहीं मानता तो उसे अमेरिकी मदद से हाथ धोना पड़ता। पाकिस्तान को अच्छी तरह याद है कि जब 2012 में उसे एफएटीएफ की काली सूची में डाला गया था तो कितनी आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ी थी। यही वजह है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने बिना देर लगाए ही अत्यंत गुपचुप तरीके से आतंकरोधी कानून 1997 में संशोधन के लिए अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए। चूंकि इस विधेयक का उद्देश्य यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल की ओर से प्रतिबंधित आतंकी संगठनों पर लगाम कसना है।

आतंकी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई

ऐसे में पाकिस्तान की जिम्मेदारी होगी कि वह जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा एवं अन्य आतंकी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करके दिखाए, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान अपने पाले-पोसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करेगा? क्या पाकिस्तान की सरकार आतंकवादी रोधी कानून के तहत हाफिज सईद को गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे डालेगी? हालांकि इसकी उम्मीद न के बराबर है। इसलिए कि पाकिस्तान पहले भी आर्थिक प्रतिबंधों से बचने के लिए अमेरिका के दबाव में आकर हाफिज सईद के खिलाफ दिखावटी कार्रवाई कर चुका है। वैसे भी जगजाहिर है कि पाकिस्तान हाफिज सईद को लेकर नरम है और अंदरखाने उसकी सेना व जांच एजेंसी आइएसआइ उससे मिली हुई हैं। यह भी सच है कि पाकिस्तान की सेना में कट्टरपंथियों का एक बड़ा समूह है जो हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई को उचित नहीं मानता।

पाकिस्तान की सामरिक रणनीति

दूसरी ओर पाकिस्तान की सामरिक रणनीति में आतंकवाद भी एक नीति की तरह है। ऐसे में हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद कैसे की जा सकती है। अगर हाफिज सईद पर कार्रवाई होनी होती तो वह 2012 में ही हो चुकी होती जब अमेरिका ने उसके सिर एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा। मजेदार बात यह कि अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने हाफिज सईद को कई बार गिरफ्तार किया और छोड़ा, लेकिन अमेरिका ने यह कभी नहीं जानना चाहा कि वह ऐसा क्यों किया? उसी का नतीजा है कि पाकिस्तान कहता रहा कि हाफिज सईद के आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के सुबूत नहीं हैं, लेकिन अब पाकिस्तान को बताना चाहिए कि जब हाफिज सईद के खिलाफ कोई सुबूत ही नहीं था तो फिर उसने फिर उसके संगठन को आतंकी संगठन करार क्यों दिया? उसके दोहरे रवैए से क्यों न इस नतीजे पर पहुंचा जाए कि वह अमेरिका एवं अन्य वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से आर्थिक मदद पाने के लिए इस तरह की ड्रामेबाजी कर रहा है? उचित होगा कि वैश्विक बिरादरी पाकिस्तान की इस नई ड्रामेबाजी की झांसेबाजी में न आए।

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