
नई दिल्ली । ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ रही तनातनी की खाई अब युद्ध के मुहाने पर जाकर खड़ी होती दिखाई देने लगी है। इसकी आशंका हम नहीं जता रहे हैं, लेकिन इस तरह की आशंका कहीं न कहीं ईरान के अंदर ही पनप रही है। यही वजह थी कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को सामने आकर यह कहना पड़ा कि अमेरिका के साथ युद्ध की आशंका फिलहाल नहीं है। अपने एक संदेश में उन्होंने यह भी कहा कि इसके बावजदू उनका देश अपनी सुरक्षा के इंतजामों को बढ़ाएगा।
डील से हटने के बाद खराब हुए संबंध
आपको बता दें कि 8 मई 2018 में अमेरिका ने ईरान से वर्ष 2015 में हुई न्यूक्लियर डील से हटने का ऐलान किया था। इसके बाद से ही दोनों के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही चला गया। इस डील में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, चीन, जर्मनी के साथ ईरान शामिल था। अमेरिका के इस डील से निकलने के बाद उसके संबंध न सिर्फ अमेरिका से बल्कि यूरोपीयन यूनियन से भी खराब हुए। यही वजह है कि ईरान के साथ अब यही देश खड़े हैं, जबकि अमेरिका के हाथ खाली हैं। इस एक मुद्दे पर अमेरिका ने अपने हाथ जला लिए हैं। यही वजह है कि जब युद्ध की आशंका लोगों के दिलों में घर करने लगी तो खामेनेई को सामने आकर इसका जवाब देना पड़ा। यह बयान उनकी वेबसाइट पर भी मौजूद है।
सुरक्षा को लेकर ईरान का नजरिया
इसके साथ ही ईरान ने अपनी बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइल क्षमता को बढ़ाने का एलान किया है। ईरान की योजना इसके साथ ही आधुनिक लड़ाकू विमान और पनडुब्बी लेने की भी है। ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई ने अमेरिका से युद्ध न होने के पीछे जो तर्क दिए हैं, उनमें सबसे प्रमुख राजनीतिक समीकरणों का उनके पक्ष में होना ही है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं। वह मानते हैं युद्ध की आशंका भले ही न हो, लेकिन इसके लिए हर वक्त तैयार रहना होगा और अपनी क्षमताओं को बढ़ाते रहना होगा। इसका जिक्र उन्होंने अपने वायुसेना के कमांडरों से मुलाकात के दौरान भी किया। एयर डिफेंस डे के मौके पर उन्होंने वायुसेना के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि उसे हमेशा तत्पर रहने के लिए तैयारियों में इजाफा करना होगा। इससे पहले ईरान ने भविष्य की परमाणु योजनाओं व अन्य मुद्दों पर फ्रांस के वार्ता के प्रस्ताव को नकार दिया था।
युद्ध की हालत में नहीं अमेरिका
दरअसल, अमेरिका खुद ईरान से युद्ध में उलझने की हालत में नहीं है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति इस वक्त अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल के अलावा कई महिलाओं से कथित अंतरंग रिश्तों के मामले में घिरे हुए हैं। इस मामले में पिछले दिनों महिला को चुप रहने के लिए ट्रंप द्वारा पैसे दिए जाने की भी बात सामने आई थी। ट्रंप के पूर्व वकील ने भी इस बात को कहा था। इसके बाद खुद ट्रंप पर महाभियोग चलाए जाने की तलवार लटकी हुई है। ऐसे में वह ईरान से युद्ध में नहीं उलझना चाहते हैं।
महाभियोग के मामले
इतिहास गवाह है कि महाभियोग के कई प्रयास आए जरूर, मगर अब तक महज दो राष्ट्रपति ही इस प्रक्रिया से हटाए जा सके हैं। महाभियोग का आखिरी मामला 42वें राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से जुड़ा है, जिन्हें ग्रैंड ज्यूरी के सामने झूठी गवाही देने और न्याय में बाधा डालने के कारण इसका सामना करना पड़ा था। उन पर मोनिका लेविंस्की से प्रेम संबंधों के मामले में झूठ बोलने और मोनिका से भी झूठ बुलवाने का आरोप लगा था।
क्या कहते हैं जानकार
विदेश मामलों के जानकार प्रोफेसर हर्ष वी पंत मानते हैं कि मौजूदा समय में अमेरिकी राष्ट्रपति का पद विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा है, और इसका कारण खुद ट्रंप हैं, जो इसे लगातार कमजोर कर रहे हैं। उनके मुताबिक दिवंगत सीनेटर मैक्कन ने भी इस बाबत अपने संदेश में कहा था कि जब हम दीवारों को तोड़ने की बजाय उसके पीछे छिप जाएंगे, जब हम अपने आदर्शों पर विश्वास करने की बजाय शक करने लगेंगे’, तो हम अपनी महानता को ही कमजोर करेंगे। हालांकि यहां पर उन्होंने ट्रंप का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा किस तरफ था यह सभी को पता है।
ट्रंप ने बिगाड़ा माहौल
पंत मानते हैं कि ट्रंप लगातार उस बुनियाद को ही चुनौती दे रहे हैं, जो अमेरिकी विदेश नीति का आधार है। आर्थिक वैश्वीकरण से पीछे हटकर और स्पष्ट रूप से यह जाहिर करके कि अमेरिका अपनी पुरानी दोस्त देश वाली छवि में नहीं रहना चाहता, डोनाल्ड ट्रंप न सिर्फ वैश्विक व्यवस्था को उलट-पलट रहे हैं, बल्कि अमेरिका की घरेलू नीति को भी अपनी शैली में हांक रहे हैं। ऐसे में यह कह पाना काफी मुश्किल है कि ट्रंप के सत्ता से बेदखल होने के बाद क्या अमेरिका अपने उस पुराने गौरव को फिर से पा सकेगा?
दो मसलों पर ईरान से टकराव
जहां तक ईरान की बात है तो आपको बता दें कि ईरान को लेकर अमेरिका की तकरार सिर्फ न्यूक्लियर डील तक ही सीमित नहीं है बल्कि सीरिया के मुद्दे पर भी ये दोनों आपने-सामने हैं। दरअसल, सीरिया के मसले पर ईरान उसका साथ दे रहा है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका सीरिया और ईरान के खिलाफ के है। सीरिया के मोर्चे पर जहां एक तरफ अमेरिका, सऊदी अरब और इजरायल हैं, वहीं दूसरी तरफ रूस, सीरिया और ईरान शामिल है।
न्यूक्लियर डील तोड़ने के पीछे ट्रंप का पक्ष
ईरान से न्यूक्लियर डील तोड़ने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना था कि यह डील अमेरिकी हित में नहीं है न ही इससे अमेरिका को कोई भी फायदा हुआ है। उन्होंने यहां तक कहा था कि वह नई डील चाहते हैं। आपको बता दें कि अमेरिका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिसको लेकर ईरान ने कड़ी नाराजगी भी व्यक्त की है।