Madhya Pradesh : चुनाव के दौरान कांग्रेस में आए नेताओं की भूमिका अधर में

भोपाल। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में भाजपा-बसपा के कई दिग्गज नेताओं का प्रवेश हुआ था। अभी तक ऐसे नेताओं को चुनाव में केवल ‘नुमाइश’ की तरह उपयोग किया गया, लेकिन इन्हें संगठन में कोई भूमिका नहीं दी गई है। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अभी पार्टी की प्राथमिकता में विधानसभा में सरकार का बहुमत साबित करना है और सरकार के विस्तार में विधायकों को समायोजित करना है।कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे सरताज सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय मसानी का प्रवेश हुआ था। चुनाव के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता रामकृष्ण कुसमरिया भी आ गए थे। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा से जीतेंद्र डागा, बहुजन समाज पार्टी से फूलसिंह बरैया, लाखन सिंह बघेल, लोकेंद्र सिंह राजपूत, साहब सिंह गुर्जर

कांग्रेस में आए, जबकि कांग्रेस से बागी होकर विस चुनाव में उतरे जेवियर मेढ़ा की पार्टी में वापसी हुई थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरताज सिंह और संजय मसानी को तो टिकट दिया था, लेकिन पार्टी को उनका फायदा नहीं मिला।

मंचों पर दिखाया, संगठन से दूर

लोकसभा चुनाव में जिन नेताओं बरैया, लाखन सिंह, लोकेंद्र सिंह, साहब सिंह, डागा को पार्टी में लाया गया, उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी के मंच और जनसंपर्क में उपयोग किया गया। मगर संगठन में ऐसे नेताओं को अभी तक जगह नहीं दी गई है।

यही नहीं कांग्रेस में वापसी करने के लिए सालों से इंतजार कर रहे भाजपा से असंतुष्ट चलने वाले नेता चौधरी राकेश चतुर्वेदी को गुना-शिवपुरी लोस सीट के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सभाओं में अपने साथ लिया था।

हालांकि पार्टी में चतुर्वेदी की सदस्यता के सवाल पर प्रदेश कांग्रेस और जिला कांग्रेस कमेटी टालमटोल जवाब दे रहे हैं। इन सभी नेताओं की कांग्रेस संगठन में भूमिका तय नहीं की गई है, जबकि विधानसभा के दौरान प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने सैकड़ों की तादाद में पदाधिकारियों की नियुक्तियां की थीं।

चुनावों में फायदा नहीं हुआ

भोपाल की हुजूर विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक रहे जीतेंद्र डागा को लोकसभा चुनाव में उनके प्रभाव के वोट दिलाने की दृष्टि से शामिल किया गया था, लेकिन 2014 की तुलना में भाजपा को 42 हजार ज्यादा वोट मिले। वहीं कांग्रेस का यहां वोट तो बढ़ा मगर भाजपा के बढ़े वोट की संख्या से 50 फीसदी से भी कम रहा।

इसी तरह झाबुआ विस सीट पर बागी उम्मीदवार के तौर पर उतरे जेवियर मेढ़ा को पार्टी में लेने के बाद भी उस अनुपात में फायदा नहीं मिला।

भाजपा यहां विस में जहां साढ़े दस हजार वोट से जीती थी, वहीं जेवियर के कांग्रेस के साथ हो जाने के बाद अंतर दोगुने के करीब पहुंच गया। इसी तरह ग्वालियर ग्रामीण के साहब सिंह गुर्जर व करेरा क्षेत्र के लाखन सिंह बघेल के कांग्रेस में आने का ग्वालियर लोकसभा सीट पर असर दिखाई नहीं दिया।

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