श्रीलंका में ईस्टर हमलों के बाद आज पहली बार राष्ट्रीय चुनाव

पिछले ईस्टर के बाद देश के पहले राष्ट्रीय चुनाव के लिए शनिवार को मतदान होना है। इसमें श्रीलंकाई मतदाताओं के सामने देश में बढ़ते इस्लामिक चरमपंथ की चिंता स्पष्ट दिखाई देगी जबकि अन्य लोग इस मानवाधिकारों के उल्लंघन पर पुराने नेताओं को दोबारा सत्ता में लौटने से रोकने की कोशिश में रहेंगे।

सीधे शब्दों में कहें तो भारत के दक्षिणी छोर पर 2.2 करोड़ लोगों में इन चुनावों के दौरान डर से निपटना अहम मुद्दा रहेगा। तीन दशक से चले गृहयुद्ध के बाद जैसे तैसे इस दक्षिण एशियाई द्वीप पर शांति लौटी थी लेकिन आईएस द्वारा ईस्टर पर तीन चर्च और तीन होटलों में किए गए धमाकों में 269 लोगों के मारे जाने के बाद यहां के हालात बदल चुके हैं।

शनिवार को होने वाले चुनावों में 1.6 करोड़ लोग योग्य मतदाता देश में राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में उतरे 35 प्रत्याशियों में से किसी एक को चुनेंगे। इनमें पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के पूर्व रक्षा अधिकारी गोतबय्या भी शामिल हैं। प्रेमदासा अपनी पार्टी के नेता पीएम रानिल विक्रमसिंघे के विद्रोह के बाद खुले रूप से उनके खिलाफ मैदान में हैं।

इन सभी पर कई तरह के आरोप भी हैं लेकिन इन चुनावों का प्रमुख मुद्दा श्रीलंका में फैले धार्मिक चरमपंथ का डर ही रहने वाला है।

जाति, नस्ल से हटकर होगा मतदान
श्रीलंका में चुनाव से ठीक पहले ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि हत्या अथवा उपद्रव की एक भी घटना नहीं हुई है। सजावट, कट-आउट और पोस्टर इस चुनाव से नदारद हैं। श्रीलंका में बौद्धों और मुस्लिमों की बड़ी आबादी है लेकिन इस बार जाति, नस्ल और सामाजिक पहचान से ऊपर उठकर मतदान होने की संभावना है क्योंकि सुरक्षा एक बुनियादी मुद्दा है।

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