चीता के बाद अब मध्य प्रदेश की धरती पर जिराफ और जेब्रा भी आएंगे

भोपाल 24 अप्रैल। चीता के बाद अब मध्य प्रदेश की धरती पर जिराफ और जेब्रा भी आएंगे। कोलकाता, मैसूर और पुणे सहित देश के 11 चिड़ियाघरों में 30 जिराफ हैं, भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क ने इन चिड़ियाघरों को पत्र लिखा, पर किसी का जवाब नहीं आया है। अब यूरोप या मध्य-पूर्व देशों से दोनों वन्यप्राणियों को लाने की तैयारी है।

इसके लिए वन विहार पार्क प्रबंधन ने शासन से डेढ़ करोड़ रुपये मांगे हैं। राशि स्वीकृत होने पर उन्हें लाने की प्रक्रिया शुरू होगी। ऐसा हुआ तो यह अंतर महाद्वपीय दूसरी परियोजना होगी। उल्लेखनीय कि चीता लाने से पहले दक्षिण अफ्रीका गए वनमंत्री विजय शाह ने वहां से लौटकर जिराफ-जेब्रा लाने की घोषणा की थी। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने योजना को मंजूरी दे दी है। योजना के अनुसार युवा नर और मादा जिराफ एवं जेब्रा लाए जाएंगे, ताकि उनकी वंशवृद्धि भी हो सके। उन्हें समुद्री मार्ग से यहां लाया जा सकता है, हालांकि यह उस देश के विशेषज्ञों से बात करके तय होगा, जिस देश से जिराफ और जेब्रा लाए जाएंगे।जानकार बताते हैं कि दोनों वन्यप्राणी अर्ध-शुष्क जलवायु में रह सकते हैं। प्रारंभिक अध्ययन में पाया गया है कि भोपाल की जलवायु उनके अनुकूल है। वे पौधों की पत्तियां, फल और फूल खाते हैं। मुख्य रूप से बबूल की प्रजातियां उन्हें पसंद हैं, जो वन विहार और आसपास पर्याप्त मात्रा में है।जिराफ और जेब्रा को अफ्रीकी देशों से लाना आसान है, क्योंकि हाल ही में चीते लाने से अनुभव हो गया है, पर ऐसा नहीं किया जा सकता है। दरअसल, फुट एंड माउथ डिजीज की बीमारी के चलते वहां से वन्यप्राणी लाने पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है। इसलिए यूरोप और मध्य-पूर्व के देशों से लाना पड़ेगा।
इसके लिए वन विहार पार्क प्रबंधन ने शासन से डेढ़ करोड़ रुपये मांगे हैं। राशि स्वीकृत होने पर उन्हें लाने की प्रक्रिया शुरू होगी। ऐसा हुआ तो यह अंतर महाद्वपीय दूसरी परियोजना होगी। उल्लेखनीय कि चीता लाने से पहले दक्षिण अफ्रीका गए वनमंत्री विजय शाह ने वहां से लौटकर जिराफ-जेब्रा लाने की घोषणा की थी। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने योजना को मंजूरी दे दी है। योजना के अनुसार युवा नर और मादा जिराफ एवं जेब्रा लाए जाएंगे, ताकि उनकी वंशवृद्धि भी हो सके। उन्हें समुद्री मार्ग से यहां लाया जा सकता है, हालांकि यह उस देश के विशेषज्ञों से बात करके तय होगा, जिस देश से जिराफ और जेब्रा लाए जाएंगे।

जानकार बताते हैं कि दोनों वन्यप्राणी अर्ध-शुष्क जलवायु में रह सकते हैं। प्रारंभिक अध्ययन में पाया गया है कि भोपाल की जलवायु उनके अनुकूल है। वे पौधों की पत्तियां, फल और फूल खाते हैं। मुख्य रूप से बबूल की प्रजातियां उन्हें पसंद हैं, जो वन विहार और आसपास पर्याप्त मात्रा में है।
जिराफ और जेब्रा को अफ्रीकी देशों से लाना आसान है, क्योंकि हाल ही में चीते लाने से अनुभव हो गया है, पर ऐसा नहीं किया जा सकता है। दरअसल, फुट एंड माउथ डिजीज की बीमारी के चलते वहां से वन्यप्राणी लाने पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है। इसलिए यूरोप और मध्य-पूर्व के देशों से लाना पड़ेगा।
विश्व में जिराफ की प्रजातियां
विशेषज्ञों ने आकार, रंग, धब्बों और क्षेत्रों के आधार पर जिराफ़ की उप जातियां (नूबिआई, सोमाली, अंगोलाई या नामीबिआई, कोरडोफन, मसाई या किलिमनजारो, राथचाइल्ड, बंरिंगो या उगांडाई, दक्षिण अफ्रीकाई, थरनिक्राफ्ट या रोडेशिआई और पश्चिम अफ्रीकाई जिराफ) निर्धारित की हैं।

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