अरविंद केजरीवाल को अब तक का सबसे बड़ा झटका, 20 AAP विधायक अयोग्य

लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के 20 विधायकों पर विधानसभा सदस्यता छिन जाने का खतरा मंडरा रहा है। चुनाव आयोग (EC) की इस मुद्दे पर शुक्रवार को अहम बैठक चली।सूत्रों की मुताबिक, संसदीय सचिव बनाए गए 20 विधायकों को चुनाव आयोग्य ने अयोग्य घोषित करने की संस्तुति राष्ट्रपति महोदय से की जाएगी।

जानकारी के मुताबिक, इस बैठक में 20 AAP विधायकों सदस्यता को लेकर लिया गया निर्णय चुनाव आयोग राष्ट्रपति को भेजेगा। बैठक मुख्य चुनाव आयुक्त की अध्यक्ष में शुक्रवार को चुनाव आयोग के कार्यालय में हुई थी।

बताया जा रहा है कि शाम तक इस बाबत रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज दी जाएगी। बता दें कि चुनाव आयोग पिछले साल 24 जून को इन विधायकों की याचिका खारिज कर चुका है।

20 AAP विधायकों की सदस्यता आयोग्य घोषित करने की चुनाव आयोग की संस्तुति के बाद विपक्षी दलों ने अरविंद केजरीवाल सरकार पर हमला बोल दिया है।

आम आदमी पार्टी के बागी विधायक और दिल्ली के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि अरविंद केजरीवाल को लालच में अंधे होने की कीमत चुकानी पड़ रही है। अगर चुनाव हुए तो सभी 20 सीटों पर केजरीवाल के लोगों की जमानत जब्त होगी।

केजरीवाल को पद पर बने रहने का हक नहींः कांग्रेस

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने कहा है कि केजरीवाल को अपने पद पर बने रहने का हक नहीं है। तकरीबन आधे से अधिक कैबिनेट के सदस्य भ्रष्टाचार के आरोप में हटाए जा चुके हैं। अब लाभ के पद पर बैठे 20 विधायकों को भी अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

प्रचंड बहुमत के साथ 14 फरवरी, 2015 को आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनी थी। सत्ता में आने के महीने भर बाद ही मार्च 2015 में 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया गया। जिसको लेकर प्रशांत पटेल नाम के वकील ने लाभ का पद बताकर राष्ट्रपति के पास शिकायत करते हुए इन विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। हालांकि विधायक जनरैल सिंह के पिछले साल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद इस मामले में फंसे विधायकों की संख्या 20 हो गई है।

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प्रशांत पटेल कहते हैं आप विधायकों की सदस्यता बचने की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि खुद दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने आयोग को दिए अपने हलफनामा में माना है कि विधायकों को मंत्रियों की तरह सुविधा दी गई। दिल्ली में सात विधायक मंत्री हो सकते हैं, लेकिन इन्होंने 28 बना दिए।

दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के फैसले का विरोध करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में आपत्ति जताई और कहा था कि दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होगा। इन विधायकों को यह पद देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है

संविधान के अनुच्‍छेद 102(1)(A) और 191(1)(A) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई सदस्य अगर लाभ के किसी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है। यह लाभ का पद केंद्र और राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है.

यह है चुनाव आयोग का तर्क

चुनाव आयोग मान रहा है कि आप के 20 विधायक संसदीय सचिव हैं, जो लाभ का पद है। ऐसे में आयोग ने AAP विधायकों की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि विधायकों की ओर से इस मामले की सुनवाई रोक देने वाली उनकी याचिका खारिज की जाती है।

इस पर AAP विधायकों ने याचिका दी थी कि जब दिल्ली हाई कोर्ट में संसदीय सचिवों की नियुक्तियां ही रद हो गई हैं तो ऐसे में ये केस चुनाव आयोग में चलने का कोई मतलब नहीं बनता।

गौरतलब है कि 8 सितंबर 2016 को हाइ कोर्ट ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद कर दी थी। इस मामले में चुनाव आयोग लगभग पिछले साल ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर चुका है।

बता दें कि आप विधायकों के पास संसदीय सचिव का पद 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 तक था। इसलिए 20 आप विधायकों पर केस चलेगा केवल राजौरी गार्डन के विधायक जरनैल सिंह को छोड़कर क्योंकि वह जनवरी 2017 में विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं।

क्या है मामला

आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को एडवोकेट प्रशात पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद करने के लिए आवेदन किया था। राष्ट्रपति ने शिकायत चुनाव आयोग भेज दी थी। इससे पहले मई 2015 में आयोग के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी।

आप के संयोजक व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के बाद उन्हें कोई लाभ नहीं दिया गया है। इसी के साथ संसदीय सचिवों को प्रोटेक्शन देने के लिए दिल्ली सरकार ने एक विधेयक पास कर राष्ट्रपति के पास भेजा था। मगर राष्ट्रपति ने सरकार के इस विधेयक को मंजूरी देने से इन्कार कर दिया था। इस विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया था, क्योंकि इन संसदीय सचिवों की नियुक्ति बिना उपराज्यपाल की अनुमति के की गई थी।

कहां फंसा है पेंच?
1. दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों की नियुक्ति मार्च 2015 में की, जबकि इसके लिए कानून में ज़रूरी बदलाव कर विधेयक जून 2015 में विधानसभा से पास हुआ, जिसको केंद्र सरकार से मंज़ूरी आज तक मिली ही नहीं।

2. अगर दिल्ली सरकार को लगता था कि उसने इन 21 विधायकों की नियुक्ति सही और कानूनी रूप से ठीक की है, तो उसने नियुक्ति के बाद विधानसभा में संशोधित बिल क्यों पास किया ?

इन 20 विधायकों पर लटकी है तलवार
1. आदर्श शास्त्री, द्वारका
2. जरनैल सिंह, तिलक नगर
3. नरेश यादव, मेहरौली
4. अल्का लांबा, चांदनी चौक
5. प्रवीण कुमार, जंगपुरा
6. राजेश ऋषि, जनकपुरी
7. राजेश गुप्ता, वज़ीरपुर
8. मदन लाल, कस्तूरबा नगर
9. विजेंद्र गर्ग, राजिंदर नगर
10. अवतार सिंह, कालकाजी
11. शरद चौहान, नरेला
12. सरिता सिंह, रोहताश नगर
13. संजीव झा, बुराड़ी
14. सोम दत्त, सदर बाज़ार
15. शिव चरण गोयल, मोती नगर
16. अनिल कुमार बाजपई, गांधी नगर
17. मनोज कुमार, कोंडली
18. नितिन त्यागी, लक्ष्मी नगर
19. सुखबीर दलाल, मुंडका
20. कैलाश गहलोत, नजफ़गढ़

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