
त्रिपुरा, मेघायल और नागालैंड में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद मध्य प्रदेश बीजेपी संगठन में बदलाव देखने मिल सकता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मध्य प्रदेश के टॉप नेताओं को एक बंद कमरे में मीटिंग के दौरान जोश भरते हुए कहा था कि दुनिया में जीत का कोई दूसरा उपाय नहीं है। शाह ने मणिपुर चुनाव की बात करते हुए बताया था कि एक कैसे 2.5 प्रतिशत वोट को 38 प्रतिशत तक पहुंचाया गया। लेकिन ऐसा लगता है मध्य प्रदेश के बीजेपी नेताओं पर अमित शाह की बातों का कोई असर नहीं हुआ।
कांग्रेस का मनोबल था तोड़ना
भोपाल में रविवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि उन्हें मुंगावली और कोलारस उपचुनाव हारने पर अफसोस है। बता दें कि मध्य प्रदेश में बीजेपी का संगठन कमजोर हुआ है। एक तरफ जहां चार साल में त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत वोट पाकर सत्ता पर पहुंच गई, वहीं मध्य प्रदेश में बीजेपी मुंगावली और कोलारस के उपचुनाव में मात्र 10-12 फीसदी वोट ही बढ़ा पाई है। एमपी में हुए उपचुनाव में मिली हार के बाद पार्टी हाईकमान ने हार की समीक्षा करना शुरू कर दिया है। कोलारस और मुंगावली में बीजेपी की लड़ाई सिर्फ सिंधिया परिवार से नहीं थी, बल्कि बीजेपी कांग्रेस के मनोबल का तोड़ना चाहती थी।
वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि मुंगावली और कोलारस उपचुनाव में साफ हो गया है कि प्रदेश में संगठन पर सत्ता भारी है। संगठन कार्यकर्ता से ज्यादा सत्ता पर निर्भर हो गया है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज और शिवराज ही संगठन देखते हैं। प्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष नंदकुमार सिंह की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। यहां पर नंदकुमार और शिवराज का एक साथ होने से बीजेपी संगठन के महामंत्री सुहास भगत अलग पड़ गए हैं। जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा हो रहा है।
बीजेपी कार्यकर्ताओं की पार्टी
मध्य प्रदेश बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहत हैं कि भारतीय जनता पार्टी अपने कैडर और कार्यकर्ता के बल पर चलने वाली पार्टी है। एक प्रभावशाली संगठन और समानांतर सरकार उसकी बड़ी ताकत है, पहले चाहे कप्तान सिंह ने बतौर संगठन महामंत्री का कार्यकाल रहा हो या माखन सिंह, अरविंद मेनन का, सत्ता यहां पर हमेशा दो गुटों में बंटती रही है। वहीं सुहास भगत सिंह अपनी भूमिका में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।