
चुनाव के ऐन मौके पर भारतीय जनता पार्टी ने जो काम किया 2008 और 2013 में किया, वही इस बार फ़िर किया जा सकता है. ख़बर है कि इस बार भी मौज़ूदा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह की जल्द ही विदाई हो सकती है. उनकी जगह जो नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे बताया जा रहा है वह केंद्रीय मंत्री का है. दैनिक भास्कर ने तो यहां तक ख़बर दे दी है कि तोमर के नाम की घोषणा अप्रैल में कभी भी हो सकती है. हालांकि भाजपा के अंदरखाने बातचीत करने पर कुछ और नाम भी निकलकर सामने आते हैं, लेकिन इनमें भी नरेंद्र तोमर की ही दावेदारी मज़बूत बताई जा रही है. ऐसा होनेकी वज़हें भी खूब गिनाई जा रही हैं.
नंदकुमार की विदाई क्यों?
मध्य प्रदेश भाजपा में नंदकुमार को ऐसे नेताओं को गिना जाता है जिनकी ज़ुबान उनके काबू में नहीं रहती. मसलन- अभी हफ़्ते-दस दिन पहले ही उन्होंने ऐसा बयान दिया जिससे भाजपा बैठे-बैठे विवाद में उलझ गई. अपने गृह नगर बुरहानपुर में पुलिस थाने की नई इमारत का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा, ‘अपराध करने के बाद अपराधी हमसे (जन प्रतिनिधियों से) यह उम्मीद करते हैं कि हम उन्हें पुलिस से बचाएं. हमें भी
मज़बूरी में पुलिस को फोन कर के. ऐसे में पुलिस को बेहद दबाव में काम करना पड़ता है.’
अभी नंदकुमार का यह बयान आया ही था कि भाजपा और शिवराज सिंह चौहान सरकार एक और असहज स्थिति में उलझ गई. राज्य के लोक निर्माण मंत्री रामपाल सिंह की ‘कथित बहू’ प्रीति रघुवंशी ने आत्महत्या कर ली. कथित बहू इसलिए क्योंकि रामपाल के पुत्र गिरिजेश प्रताप सिंह ने प्रीति से घरवालों से छिपकर भोपाल के एक मंदिर मेंं शादी की थी. उसे वह पत्नी का दर्ज़ा देता इससे पहले ही परिवार वालों ने उसकी दूसरी शादी की तैयारी शुरू कर दी. ख़बरों की मानें तो इसी के चलते प्रीति ने आत्महत्या की. और अब इससे आगे की ख़बर है कि रामपाल, उनकी पार्टी और सरकार के दबाव में
प्रीति के परिवार पर दबाव बना रही है कि वे कुछ ले-देकर रामपाल और उनके परिवार से समझौता कर लें. बस यहीं से विपक्ष को भाजपा पर हमला करने का मौका मिल गया है जो कि वह कर भी रहा है. हमले के लिए सियासी गोला-बारूद तो नंदकुमार सिंह चौहान के बयान ने पहले ही उपलब्ध करा दिया था जिसका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है.
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा और उसके मुखिया ऐसी स्थितियों में उलझे हों. इससे पहले जब राज्य के आनंद मंत्री के ख़िलाफ़ हत्या के एक मामले में ग़िरफ़्तारी वारंट जारी हुआ था तब भी ऐसी ही स्थिति बनी थी. उस वक़्त भी नंदकुमार सिंह दावे के साथ कह रहे थे, उनकी जमानत का बंदोबस्त कर लिया जाएगा.’ आगे चलकर वह बंदोबस्त हो भी गया.
यही नहीं, पिछले साल जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मध्य प्रदेश की तीन दिन की यात्रा पर आए थे तो उन्होंने भी पार्टी के संगठन के काम करने के तौर-तरीकों पर ख़ासा ऐतराज़ जताया था. ख़ास तौर पर पार्टी के के मामले का उन्होंने विशेष उल्लेख किया था. तभी से अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रदेश नेतृत्व में देर-सबेर परिवर्तन तय है. इसके बाद पिछले महीने जब मुंगावली और कोलारस विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को हार मिली तो यह लगभग तय हो गया कि इस हार के बाद सरताज सिंह और बाबूलाल गौर जैसे पार्टी के अतिवरिष्ठ नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व के ख़िलाफ़ दिया.
हालांकि एक वर्ग अब भी बदलाव से इंकार कर रहा है
वैसे इन तमाम स्थितियों और अटकलों के बावज़ूद एक वर्ग ऐसा भी है जो बदलाव की संभावनाएं नकारता है. मिसाल के तौर पर प्रदेश उपाध्यक्ष विजेश लूनावत से जब सत्याग्रह ने राय लेनी चाही तो उन्होंने साफ़ कहा, ‘पार्टी में कोई असंतोष नहीं है. जिन वरिष्ठ नेताओं को थोड़ी-बहुत शिकायत थी उनका प्रदेश नेतृत्व ने समाधान कर दिया है. रही बदलाव की बात तो पार्टी मौज़ूदा नेतृत्व की अगुवाई में ही विधानसभा चुनाव में उतरेगी.’
इसके बावज़ूद बदलाव की संभावनाएं सिरे से ख़ारिज़ नहीं की जा सकतीं. इसकी कुछेक मज़बूत वज़हें तो ऊपर गिनाई जा चुकी हैं. सो अब यह सवाल भी हो ही सकता है कि अगले प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार कौन-कौन हो सकते हैं. उनकी दावेदारी को मज़बूत और कमज़ोर करने वाली कौन-कौन सी चीजें हो सकती हैं? इसका जायज़ा लेते हैं.
प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदारों में कई नाम हैं. जैसे- नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्र, कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद सिंह पटेल आदि. इन सभी की दावेदारी के पीछे उनकी अपनी कुछ ख़ासियतें हैं. लेकिन थोड़ी-बहुत चीजें ऐसी भी हैं जो उनकी दावेदारी को कमज़ोर करती हैं.
नरेंद्र सिंह तोमर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वस्त केंद्रीय मंत्रियों में गिने जाते हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी वे पहली पसंद हैं. इससे पहले 2008 और 2013 के राज्य विधानसभा चुनावों के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वे शिवराज के साथ मिलकर पार्टी की सत्ता में वापसी करा चुके हैं. पार्टी संगठन में लगभग सभी वरिष्ठ-कनिष्ठ नेताओं से उनकी अच्छी बनती है. आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) की राय भी इनके बारे में अच्छी है. ऐसे में तोमर के अध्यक्ष बनने की संभावनाएं सबसे अधिक बनती हैं.
लेकिन केंद्र में मंत्री होना इनके लिए एक दिक्कत बन सकता है. प्रधानमंत्री मोदी इन्हें छोड़ेंगे या नहीं यह कहना मुश्किल है. चूंकि पार्टी में लंबे समय से ‘एक व्यक्ति एक पद’ का सिद्धांत लागू है. ऐसे में अगर केंद्र में मंत्री रहते हुए तोमर को प्रदेश अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी दी गई तो पार्टी के ही कई असंतुष्टों के साथ विपक्ष को भी मुद्दा मिल सकता है. और अगर उन्हें मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिलवाया गया तो प्रधानमंत्री मोदी को परेशानी हो सकती है.