
भारतीय बीमा नियामक विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बीमा क्लेम का तेजी से निपटारे के लिए अहम सिफारिश की हैं। इसमें बीमा क्लेम पर 30 दिन में रिपोर्ट देने का अहम सुझाव भी है। इससे सर्वेयर और लॉस एसेसर्स (नुकसान के आकलनकर्ता) किसी कारण से कार, घर या अन्य बीमा उत्पादों को हुए नुकसान के सर्वे या आकलनराशि में देरी या गड़बड़ी नहीं कर पाएंगे।
कार्यसमूह ने सर्वे रिपोर्ट में कहा है कि सर्वेयर को क्लेम आवेदन के सात कार्यदिवस के भीतर बीमाधारक को बताना होगा कि उसे किन दस्तावेजों की जरूरत है। अगर ये दस्तावेज सार्वजनिक रूप से मौजदू हैं, तो सर्वेयर खुद इन्हें इकट्ठा कर क्लेम आवेदन को आगे बढ़ाएगा। उसने यह सिफारिश भी की है कि सर्वेयर पहली विजिट के 15 दिन के भीतर अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंप दे। जबकि दस्तावेज मिलने के 30 दिन के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी जानी चाहिए। कार्यसमूह ने सर्वेयर और लॉस एसेसर्स से संबंधित मानकों में बदलाव पर तमाम बदलाव सुझाए हैं, बीमा क्लेम का तेजी से निपटारा हो सके।
कार्यसमूह ने कहा है कि सर्वेयर या लॉस एसेसर्स तय समयसीमा में रिपोर्ट दें, इसके लिए इरडा सर्वे और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को तार्किक और सरल बनाएगा। साथ ही सर्वेयर पर बीमाकर्ता कंपनी और इरडा की निगरानी भी सघन होगी। समूह सुझाव देगा कि कैसे व्यावहारिक प्रशिक्षण के जरिये सर्वेयरों के काम को और ज्यादा पेशेवर बनाया जा सकता है। नुकसान के आकलन में डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल पर भी कार्यसमूह ध्यान देगा। सर्वेयर के लिए द्विस्तरीय परीक्षा व्यवस्था का भी प्रस्ताव है। सर्वेयर और लॉस एसेसर्स संबंधी दिशानिर्देश दशकों पुराने हैं। बीमा अधिनियम 1938 में 1968 में बदलाव कर उसे नियामक के दायरे में लाया गया था।
फसल बीमा पर विशेष ध्यान रहेगा
कार्यसमूह फसल बीमा के निपटारे पर विशेष ध्यान देगा। इसका सर्वेयर बनने के लिए प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से कृषि विज्ञान से जुड़े किसी एक विषय में स्नातक करना अनिवार्य होगा। फसल बीमा में सर्वेयर अक्सर राजस्व से जुड़ी बारीकियों को नहीं समझ पाते हैं।
क्लेम में देरी से ग्राहकों में असंतोष
मालूम हो कि बीमा क्लेम के निपटारे में देरी और उनका तमाम अनुचित कारणों से खारिज हो जाना ग्राहकों और बीमा नियामक के लिए बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है। बीमा उत्पादों के बेचे जाने के दौरान ग्राहकों से जानकारी छिपाना और या गलत जानकारी देना भी इसका कारण होता है। इस कारण ग्राहकों को नियम और शर्तों का हवाला देकर क्लेम खारिज कर दिया जाता है और ये मामले अदालत या उपभोक्ता फोरम तक पहुंच जाते हैं।