भोपाल. मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर लंबे मंथन पर शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि विष शिव को पीना पड़ता है. जाहिर है कि मुख्यमंत्री के नाते शिवराज सिंह चौहान पर संतुलन और समन्वय बनाने की जिम्मेदारी भी है. ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के बीजेपी (BJP) में आ जाने के बाद पार्टी में मची आंतरिक उथल-पुथल के बीच शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) मंत्रिमंडल का विस्तार करने में सफल हो गए.मार्च महीने में मध्यप्रदेश में तख्त पलट की जो इबारत लिखी गई थी, उसके शिल्पकारों के लिए मंत्रिमंडल का यह विस्तार बेहद तनावपूर्ण दिखाई दिया. मंत्रिमंडल में किसे लें, किसे छोड़े इस उधेड़बुन में उन्हें अपने करीबी कई पुराने साथियों को दर्शक दीर्घा में बैठाना पड़ा. ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबियों के लिए यह मंत्रिमंडल लाभ का सौदा दिखाई दे रहा है.
शिवराज के वादों से भी छूट गए कई पुराने चेहरे
बिसाहूलाल सिंह, ऐंदल सिंह कंसाना और हरदीप डंग कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक नहीं माने जाते थे, बल्कि दिग्विजय सिंह समर्थक माने जाते रहे.
अब इन्हें भी सिंधिया समर्थक ही माना जा रहा है. बिसाहू लाल सिंह कहते हैं कि जो सम्मान कांग्रेस ने नहीं दिया वह बीजेपी में मिला है. जिन विधायकों को बीजेपी के पक्ष में लाने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें मंत्री बनाने का वादा किया था उसे पूरा करने के कारण भी बीजेपी के कुछ पुराने विधायकों को दर्शक दीर्घा में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा. इनमें रामपाल सिंह गौरीशंकर बिसेन भी हैं. रामपाल सिंह कहते हैं कि मंत्रिमंडल में मेरे न होने की वजह सभी जानते हैं. उन्होंने कहा कि मैं हमेशा पार्टी की बात मानता हूं. गौरी शंकर बिसेन ने कहा कि जिन लोगों के कारण सरकार बनी, पार्टी की प्राथमिकता अभी उनको लेकर है. संभावना इस बात की है कि इनमें से किसी एक को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है.
BJP में सिंधिया का प्रभाव बढ़ाने की कवायद
ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी में लाने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की रणनीति अलग थी. मंत्रिमंडल विस्तार में हो रही देरी के बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपनी वर्चुअल रैली के मंच से सिंधिया को आश्वस्त किया था कि पार्टी उनकी इच्छा और शर्तों का पूरा सम्मान करेगी. सिंधिया के कट्टर समर्थक विधायकों की संख्या 19 मानी जाती है. सिंधिया के करीबी बीजेपी नेता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि उप चुनाव को जीतने के लिए जिन चेहरों को मंत्री बनाया जाना जरूरी है, उन्हें ही प्राथमिकता देने पर जोर है. शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में शामिल किए गए सदस्यों में सिंधिया समर्थकों की संख्या संख्या दस है. दो समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत पहले से ही मंत्रिमंडल में हैं. कमलनाथ मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थकों की संख्या कुल छह थीं. सिंधिया के कारण भाजपा में मची उथल-पुथल पर कांग्रेस नजर बनाए हुए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव कहते हैं कि बीजेपी ने सरकार जरूर बना ली, लेकिन नेताओं का असंतोष से अस्थिरता बनी रहेगी.
शिवराज विरोधी चाहते थे बराबर की हिस्सेदारीशिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल का गठन 21 अप्रैल को किया था. इस गठन में केवल पांच चेहरों को जगह दी गई थी. इनमें नरोत्तम मिश्रा और कमल पटेल को शिवराज सिंह चौहान का विरोधी माना जाता है. मीना सिंह को आदिवासी होने के कारण मंत्रिमंडल में जगह दी गई थी. जबकि दो अन्य तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत कांग्रेस छोड़कर सिंधिया के साथ बीजेपी में आए थे. गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा,केन्द्रीय नेतृत्व की पसंद माने जाते हैं.
बताया जाता है कि मिश्रा उप मुख्यमंत्री पद के लिए दबाव बना रहे थे. यद्यपि मिश्रा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वे उप मुख्यमंत्री नहीं बन रहे हैं. जाहिर है कि शिवराज सिंह चौहान केन्द्रीय नेतृत्व को इस बात पर राजी करने में सफल हो गए कि मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री की परंपरा शुरू न की जाए. शिवराज सिंह चौहान के एक अन्य विरोधी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की पसंद माने जाने वाले रमेश मेंदोला एक बार फिर चूक गए. सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट पहले से ही मंत्रिमंडल में हैं.
उपचुनाव को ध्यान में रखकर ही संतुलन बनाने की कोशिश
महू की विधायक ऊषा ठाकुर का नाम पार्टी संगठन ने जोड़ा है. इंदौर में पूर्व मंत्री महेन्द्र हार्डिया को दर्शक दीर्घा में बैठाना पड़ा. मालवा-मध्यभारत क्षेत्र होने वाले उप चुनाव को ध्यान में रखकर ही संतुलन बनाने की कोशिश की गई. इस अंचल में सांवेर, हाट पिपल्या, सुवासरा और बदनावर में उप चुनाव होना है. यहां पुराने भाजपाई नाराज हैं. इन्हें साधने की जिम्मेदारी विजयवर्गीय को मिली है. दूसरी और ओमप्रकाश सकलेचा जैसे विरोधियों को मंत्रिमंडल में जगह मिलने से यह संकेत साफ है कि राष्ट्रीय नेतृत्व अब उन लोगों को महत्व दे रहा है, जो शिवराज सिंह चौहान के कारण उपेक्षित थे.
ग्वालियर-चंबल में जातीय समीकरणों को महत्व
विधानसभा के आम चुनाव में भाजपा की पार्टी की हार को लेकर हुई समीक्षा में यह बात उभर सामने आई थी कि यदि शिवराज सिंह चौहान प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर ‘माई का लाल’ का बयान न देते तो ग्वालियर-चंबल अंचल के नतीजे अलग होते. अब विधानसभा के उप चुनाव भी इसी अंचल में सबसे ज्यादा हैं. ‘माई का लाल’ बयान सवर्ण वर्ग को आज भी याद है. कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले विधायकों से दलित वर्ग नाराज दिखाई दे रहा है. सिंधिया समर्थक इमरती देवी इसी वर्ग की हैं. वे कमलनाथ मंत्रिमंडल में भी थीं. शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में ब्राह्मण वोटों को साधने के लिए मुरैना जिले में गिर्राज दंडोतिया को जगह दी गई है.
मंत्रिमंडल के गठन में पार्टी का मान और सिंधिया का सम्मान फार्मूला अपनाया गया. अरविंद भदौरिया के साथ-साथ ओपीएस भदोरिया को मंत्री बनाया गया. ओपीएस भदोरिया कांग्रेस से भाजपा में आए हैं. सिंधिया ने अपने गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र कके समर्थकों को खास महत्व दिया है. सुरेश धाकड़ और ब्रजेन्द्र यादव का नाम प्रमुख है. सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को भी जगह मिली है. कुल 28 मंत्री बनाए गए हैं. मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद सिंधिया उन सभी 22 विधायकों से अलग-अलग चर्चा करेंगे, जो कांग्रेस छोड़कर उनके साथ भाजपा में आए थे. यह चर्चा मुख्यमंत्री निवास में तय है. शिवराज सिंह चौहान भी इसमें मौजूद रहेंगे.