बैंकिंग घोटाला में पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद का नाम

देश में इन दिनों बैंकिंग घोटाला की बाढ़ सी आ गई है। पंजाब नेशनल बैंक के बाद विक्रम कोठारी का मामला अभी चल ही रहा है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद भी बैंकिंग घोटाला की जद में आ गए हैं। उत्तर प्रदेश के हापुड़ में सिंभावली शुगर्स लिमिटेड ने किसानों को गन्ना का भुगतान करने के लिए 110 करोड़ रुपया लोन लेकर किसी अन्य काम में लगा दिया।

लोन प्रदाता बैंक ओरियंटल बैंक ऑफ ने इस मामले में गंभीर रुख अपनाया और सीबीआइ से जांच की मांग की। सीबीआइ ने इनकी मांग पर हापुड़ की सिंभावली शुगर्स लिमिटेड मिल और उसके अधिकारियों के खिलाफ करीब 110 (109.08 करोड़) करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का केस कर्ज किया। सीबीआई की इस एफआईआर में सिंभावली शुगर मिल- हापुड़, गुरमीत सिंह मान- चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर, गुरपाल सिंह- डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर, जीएससी- सीईओ, संजय टपरिया- सीएफओ, गुरसिमरन कौर मान- एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर- कमर्शियल, पांच नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया है। इस मिल के डायरेक्टर पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद गुरपाल सिंह भी हैं। इनके खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है।

सिंभावली शुगर्स लिमिटेड ने 2012 में 5700 गन्ना किसानों को पैसे देने के नाम पर ओरिएंटल बैंक से 150 करोड़ रुपये का लोन लिया, लेकिन इस पैसे को किसानों को देने की बजाय निजी इस्तेमाल में खर्च किया। इसके बाद मार्च 2015 में लोन एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट) में बदल गया। उसके बाद भी बैंक ने इस मिल को 109 करोड़ का कॉरपोरेट लोन भी मंज़ूर कर दिया, जो पिछला बकाया चुकाने के लिए लिया गया। इसके बाद में लोन की यह रकम भी एनपीए में बदल गई।

सीबीआइ में दर्ज शिकायत में लिखा गया है कि ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने सिंभावली शुगर्स को गन्ना किसानों को ईख की खेती करने के लिए कर्ज देने की मंजूरी दी थी। बीएसई में सूचीबद्ध सिंभावली शुगर्स अब तक शुद्ध चीनी, सफेद चीनी, क्रिस्टल चीनी और विशेष चीनी का उत्पादन करती है। भारतीय रिजर्व बैंक (जुलाई 2011) के जारी परिपत्र के आधार पर वर्ष 2012 में बैंक ने इस लोन को स्वीकृति दे दी थी।

इसके बाद 8 नवंबर, 2011 को कंपनी ने ओबीसी बैंक को एक प्रस्ताव पेश किया। जिसमे कहा गया था कि शुगर मिल ने बैंक को बताया था कि इस लोन से हर किसान एक स्कीम के तहत शुगर मिल से ही अच्छी पैदावार के लिए बीज, उर्वरक व खाद खरीदेगा। इसके बाद शुगर मिल ने 5762 परिवारों की एक सूची बैंक में जमा की। इस लोन की सीमा प्रति किसान तीन लाख रुपये रखी गई और कंपनी कुल निवेश 159 करोड़ रुपये से अधिक नहीं हो सकता था। इस योजना के अनुमोदन के बाद, कंपनी ने किसानों के नाम के साथ उनकी जमीन के दस्तावेज और रिकॉर्ड भी बैंक को मुहैया कराए थे। साथ ही कंपनी को केवाइसी फॉर्म भी जमा करने थे।

इसके बाद 25 जनवरी 2012 से 13 मार्च 2012 के दौरान 5762 किसानों को ऋण दिया गया। इसके तहत करीब 148.59 करोड़ रुपये का कुल ऋण की राशि का भुगतान किया गया था। इसके लिए 5762 खाते खोले गए और लोन ट्रांसफर किया गया। इसके कुछ दिन बाद ही पूरी राशि कुछ दिन बाद वापस कंपनी के एकाउंट में चली गयी और कंपनी ने इसे किसी दूसरे बैंक एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया। सिंभावली ने इस बीच करीब 60करोड़ रुपये कंपनी ने किश्तों के जरिये बैंक को लौटा दिए थे लेकिन बाकी 90 करोड़ वापस नही किया गया। जिसका ब्याज लगाकर कुल बकाया करीब 110 करोड़ रुपये का हो गया।

उसके बाद बैंक द्वारा की गई जांच से पता चला एक कंपनी ने किसानों के नाम पर गलत केवाईसी प्रमाण पत्र जारी किया। दूसरी कंपनी ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के खाते से दूसरे बैंकों को धन हस्तांतरित कर दिया। इस कारण धनराशि का बड़ा दुरूपयोग हुआ। सिंभावली ने प्राप्त ऋण से पहले ही आपूर्ति की गई गन्ने के बकाया का भुगतान करने के लिए इस्तेमाल किया था। सीबीआई से शिकायत में ओबीसी बैंक का कहना है कि एसबीआई की अगुवाई में कई बैंको के समूह के 110 करोड़ रुपए का कॉरपोरेट लोन कंपनी के किश्तों का भुगतान न करने के कारण खाता 29 नवंबर 2015 को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) में आ गया था।

सीबीआइ ने कल सिंभावली चीनी मिल के कार्यालय में छापा मारकर कई कंप्यूटर, सीडी और अन्य दस्तावेज जब्त किए हैं। रिजर्व बैंक के निर्देश पर कल सीबीआइ ने सिंभावली चीनी मिल के आठ ठिकानों पर छापा मार कर दस्तावेज जब्त कर गहन जांच पड़ताल की। सुबह नौ बजे सब कुछ सामान्य चल रहा था कि अचानक सीबीआइ के डिप्टी एसपी आकाश कुमार मीणा के नेतृत्व में पांच सदस्यीय टीम सिंभावली चीनी मिल के हेड ऑफिस पहुंची। अपना परिचय देते हुए तुरंत आवश्यक दस्तावेज अपने कब्जे में ले लिए और जांच पड़ताल शुरू कर दी। जांच टीम के सदस्यों ने कंप्यूटर, सीडी व कई रजिस्टर अपने कब्जे में लेकर पांच घंटे तक सघन जांच की। उसके बाद जांच टीम लौट गई। इस संबंध में चीनी मिल अधिकारी दिनेश शर्मा ने बताया कि कंपनी ने ओबीसी बैंक की गाजियाबाद शाखा से 109 करोड़ रुपये का लोन लिया था। उसी जांच पड़ताल करने के लिए डिप्टी एसपी आकाश कुमार मीणा के नेतृत्व में पांच सदस्य टीम आई थी।

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