‘द्रोण’ के चक्रव्यूह में फंसे संघ के महारथी

नई दिल्ली : संघ के महारथियों ने योजना तो बनाई थी कांग्रेस के ‘द्रोण’ और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आशीर्वाद से 2019 की सियासत का रुख बदलने की लेकिन राजनीति के इस पुरोधा ने अपने सियासी तीरों से संघ और भाजपा के लिए ही असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। दरअसल नागपुर में संघ के मंच से प्रणब मुखर्जी ने जो चक्रव्यूह रचा उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता भाजपा और संघ को फिलहाल दिख नहीं रहा है। उन्होंने संघ के मंच से ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की देशभक्ति और विकासपरक सोच पर मुहर लगा दी।

खास बात यह है कि नेहरू और कांग्रेस के पक्ष में प्रणब मुखर्जी ने यह कसीदे उस जगह और उन लोगों के बीच पढ़े जो कभी नेहरू का नाम लेना भी पसंद नहीं करते हैं। उनकी नीतियों से सहमत और असहमत होना तो बाद की बात है। प्रणब के भाषण को अगर ध्यान से सुनें तो पता चलता है कि शुरुआत के अलावा पूरे भाषण में पूर्व राष्ट्रपति ने एक बार भी संघ के किसी नेता विनायक दामोदर, श्याम प्रसाद मुखर्जी सहित किसी का न तो नाम लिया और न ही एक बार भी उनकी विचारधारा का समर्थन किया।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की नेहरू की नीतियों, सहिष्णुता, बहुलता और भारतीय संविधान के प्रति आस्था की अपनी विचारधारा को संघ पदाधिकारियों के सामने रखा।यह ठीक उसी तरह से था कि जैसे पाकिस्तान के वसीम अकरम कोई पार्टी दें और उसमें आए मेहमान तेंदुलकर, विराट कोहली और धोनी का गुणगान करने लगें। कुल मिलाकर संघ मुख्यालय में कांगे्रस के द्रोण की यह मास्टर क्लास थी, जिसमें उन्होंने शालीनता, सम्मान, वाकपटुता, अनुशासन और सभ्य तरीके से बिना कोई समझौता किए अपनी विचारधारा और भारतीय संविधान के प्रति आस्था को संघ और देश के सामने रखा। हालांकि हेडगेवार को भारत का महान सपूत बताकर मुखर्जी ने अपने शब्दों की धार को इतना कुंद जरूर कर दिया था कि आरएसएस के लोग विचलित तो हों लेकिन घायल नहीं होने पाएं। कुल मिलाकर उन्होंने साबित कर दिया कि उन्हें क्यों कांग्रेस का भीष्म पितामाह, संकट मोचक और द्रोणाचार्य कहा जाता है और विपक्ष के लोग भी उनकी सियासत के आगे क्यों नतमस्तक होने के लिए मजबूर होते रहे हैं।

खुद को कोस रहे होंगे कांग्रेसी
कांग्रेस के नेता अगर सियासत को थोड़ा भी समझते हैं तो संघ का न्योता स्वीकार किए जाने पर पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ की गई बयानबाजी के लिए खुद को ही कोस रहे होंगे। आखिर प्रणब मुखर्जी ने खुद को धर्मनिरपेक्ष, बहुलता, सहिष्णुता और लोकतंत्र के रक्षक के रूप में और मजबूती के साथ देश के सामने पेश किया है। जिसका झंडा उठाकर कांग्रेस अब तक सियासत करती रही है और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस भाजपा को इन्हीं मुद्दों के सहारे पटखनी देने की रणनीति बना रही है। अब मुखर्जी की सीख का कांग्रेस कितना सियासी लाभ उठा पाती है यह तो समय ही बताएगा।

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