अमरीकियों के गले की फांस बनी ट्रंप की ये योजना

वॉशिंगटनः कानूनी रूप से अमरीका आने वाले विदेशियों की संख्या घटाने के मकसद से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन पहले की तुलना में एच-1 बी वीजा आवेदनकर्ताओं को देरी के लिए मजबूर कर रहा है। आवेदनकर्ताओं को अतिरिक्त जानकारी प्रदान करने और अनुमोदन में देरी करने से अमरीका के अस्पताल, होटल, प्रौद्योगिकी और अन्य व्यवसायों से जुड़ी कंपनियों में नई नियुक्तियां रुक गई हैं। ट्रंप की ये नीति अमरीकियों के गले की फांस बनती जा रही है क्योंकि इसके चलते अमरीकी कार्पोरेट जगत ने देश से प्रतिभाशाली इंजीनियरों व प्रोग्रामरों के खोने के दीर्घकालीन प्रभावों पर चिंता जताई है।

ट्रंप की इसी नीति के चलते विदेशी कामगारों को नौकरी पर न रख पाने कारण होटल, प्रौद्योगिकी व अस्पताल से जुड़ी कई अमरीकी कंपनियां मुसीबत में नजर आ रही हैं । इस कारण उन्हें अच्छी सेवाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। नॉर्थवेल आइसलैंड स्थित एक पैथोलॉजी लैब में नए डॉक्टर का कैबिन खाली है, क्योंकि उसकी डॉक्टर वीजा में बिना कोई कारण के हो रही देरी के कारण पंजाब में फंसी हुई है। यहां के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी डॉ. एंड्रयू सी. यॉट ने कहा कि इस काम में इतनी देरी होगी ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया।

अप्रैल 2017 में ट्रंप ने ‘बाय अमरीकन एंड हायर अमरीकन’ नीति के कार्यकारी आदेश पर दस्तखत करते हुए अधिकारियों को आप्रवासन कानून के मजबूती से लागू करने के निर्देश दिए थे। इसका असर अब जमीन पर दिखने लगा है। नेशनल फाउंडेशन ऑफ अमरीकन पॉलिसी के सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि कुशल श्रमिकों के लिए एच-1 बी वीजा आवेदनों के खारिज होने की दर 2017 के मुकाबले सिर्फ पिछले तीन माह में 41 फीसदी बढ़ी है। उन्हें उम्मीद है कि नई दिल्ली में टू प्लस टू वार्ता में सुषमा स्वराज द्वारा यह मुद्दा उठाने से शायद कुछ असर पड़े।

अमरीका के कॉर्पोरेट नेताओं के एक कारोबारी समूह ‘गोलमेज’ ने हाल ही में ट्रंप प्रशासन को उन बदलाव पर चुनौती दी है जो कहते हैं कि हजारों कुशल विदेशी श्रमिकों से देश के आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्धा को खतरा है। चूंकि प्रौद्योगिक कंपनियां भारत और चीन से हर साल हजारों कर्मचारियों को नियुक्ति देकर गैर-अप्रवासी वीजा ‘एच-1 बी’ पर निर्भर करती हैं इसलिए उनके पास ट्रंप की नई अप्रवासी नीति के कारण कुशल लोगों की नियुक्तियां प्रभावित होने लगी हैं। इसका दीर्घकालीन असर देश के विकास पर पड़ना तय है।

हाल ही में अमरीका के एक गैर-लाभकारी निकाय की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमरीकी आप्रवासन प्राधिकरण के कारण अन्य देशों की तुलना में भारतीयों की एच-1 बी वीजा आवेदनों को अस्वीकार करने में काफी बढ़ोतरी हुई है। ट्रंप प्रशासन इस वीजा प्रणाली के सुधार के लिए दबाव डालते हुए कह रहा है कि कुछ आईटी कंपनियां अमेरिका के कामगारों को नौकरियों पर रखने से इनकार करने के लिए अमेरिकी कार्य वीजा का दुरुपयोग कर रही हैं। इसका असर नई नियुक्तियों पर पड़ रहा है।

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