
धीरे-धीरे दुनिया को चीन की कर्ज नीति समझ में आने लगी है। हाल ही में चीनी कर्ज को लेकर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा समय में संसद के स्पीकर मुहम्मद नशीद का चीन के राजदूत से टकराव हो गया। इसको लेकर दोनों देशों के बीच टेंशन बढ़ गई है। मालदीव पर चीन का 3.4 अरब डॉलर का कर्ज। वहीं चीन समर्थक मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुला यामीन के सत्ता से हटने के बाद हिंद महासागर के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस देश में भारत की पकड़ मजबूत हुई है।
कर्ज का जाल
पिछले हफ्ते एक थिंक टैंक की बैठक में बोलते हुए नशीद ने कहा कि चीनी परियोजनाओं की लागत बहुत अधिक है और 2020 के बाद से देश के बजट का 15 फीसद विभिन्न चीन की कंपनियों का बकाया कर्ज चुकाने पर खर्च होगा। उन्होंने काम किया और हमें बिल भेज दिया। यह कर्ज की ब्याज दरों के रूप में नहीं है, बल्कि लागत ही है। उन्होंने हमें अधिक बिल दिया और हमसे वह वसूला जा रहा है। और अब हमें ब्याज दर और मूल राशि चुकानी होगी।
भारत की बजाय चीन को दिया ठेका
भारत के जीएमआर ग्रुप ने सिनामले सेतु परियोजना (चीन-मालदीव मैत्री पुल) को 7.7 करोड़ डॉलर देने का प्रस्ताव दिया था। जबकि चीन कम्युनिकेशन एंड कॉन्ट्रैक्टिंग कंपनी (सीसीसी) ने ऊंची कीमत पेश की। यामीन सरकार ने ठेका चीन की कंपनी को दे दिया। जिसके कारण मालदीव पर सीसीसीसी का 30 करोड़ डॉलर का कर्ज है।
चीन का जवाब
चीन के राजदूत झांग लिजहोंग का कहना है कि सेतु परियोजना की लागत 20 करोड़ डॉलर थी, जिसका 57.5 फीसद धन चीनी अनुदान सहायता द्वार मुहैया कराया गया था। मालदीव सरकार को केवल 10 करोड़ का भुगतान करना था, जो कि परियोजना लागत का आधा था।
भारत के लिए अहम
पहले कार्यकाल में मालदीव गए पीएम मोदी ने कहा था कि भारत मालदीव की वित्तीय समस्याओं को दूर करने को तैयार है। दोबार सत्ता में आने बाद मोदी जून में अपने पहले विदेशी दौरे पर मालदीव ही गए, जहां उन्होंने दोनों देशों के बीच सहयोग का संकेत दिया है। मालदीव एक ऐसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग से सटा हुआ है, जिससे होकर भारत खाड़ी देशों से कच्चे तेल का आयात करता है। लिहाजा, भारत के लिए जरूरी है कि इस मार्ग पर उसका दबदबा रहे। भारत ने 2019- 20 के बजट में मालदीव को 576 करोड़ रुपये सहायता राशि आवंटित की है, जो पिछले बजट में आवंटित 440 करोड़ रुपये से अधिक है।
चीन के कर्ज तले दबे दुनिया के ये देश
द सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के मुताबिक वन बेल्ट वन रोड में भागीदार बनने वाले आठ देश चीनी कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं।
ये देश है – जिबुती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोंटेनेग्रो, पाकिस्तान और तजाकिस्तान। इन देशों ने यह अनुमान तक नहीं लगाया कि कर्ज से उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी। कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति में ही कर्ज लेने वाले देशों को पूरा प्रोजेक्ट उस देश के हवाले करना पड़ता है। श्रीलंका पर भी चीन का बेशुमार कर्ज है। पिछले साल तो इस देश को एक अरब डॉलर से ज्यादा कर्ज के कारण चीन को हंबनटोटा पोर्ट ही सौंपना पड़ गया था।